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________________ खण्ड ] :: प्राचीन गूर्जर मंत्री-वंश और महाबलाधिकारी दंडनायक विमल :: [ ७१. विमलशाह ने युद्ध की तैयारी की और एक बहुत बड़ा सैन्य लेकर उक्त यवनों से युद्ध करने चल पड़ा । रोमनगर के स्थान पर दोनों के बीच भारी संग्राम हुआ । यवन - सैन्य जो महमूद गजनवी के प्रसिद्ध बारह सैन्यपदाधिकारी सामन्तों, जिन्हें सुल्तान भी कहते हैं की अधीनता में थीं, परास्त हुई। उक्त बारह सुल्तानों ने अपने ताज विमलशाह को अर्पण करके उसकी आधीनता स्वीकार की। इस प्रकार जय प्राप्त कर विमल चन्द्रावती लौट आया । चन्द्रावती आकर उसने धंधुक को, जो मालवपति की शरण में रह रहा था बुलवाकर समझाया । जब उसने भीमदेव प्र० की अधीनता पुनः स्वीकार कर ली, तब दंडनायक विमल ने भीमदेव प्र० की आज्ञा लेकर चन्द्रावती का राज्य उसको लौटा दिया। विमल के त्याग, शौर्य, औदार्य और निस्पृह गुणों का यहाँ परिचय मिलता है । चन्द्रावती का राज्य धंधुक को पुनः देकर दंडनायक विमलशाह ने चार कोटि स्वर्ण-मुद्रायें व्यय करके विशाल संघ के साथ में श्री विमला चलतीर्थ (शत्रुंजय महातीर्थ ) की यात्रा की । इस संघयात्रा में गुर्जर, मालव एवं राजस्थान के अनेक संघपति, सामन्त, श्रीमन्त एवं सद्गृहस्थ लाखों की संख्या में सम्मिलित हुये थे। ऐसा विशाल संघ कई वर्षों से नहीं निकला था। संघ में सहस्रों बैलगाड़ियां, शकट और सुखासन थे। संघ की रक्षा के लिये विमल के चुने हुये वीर योद्धा एवं अनेक सामन्त और मांडलिक राजा थे। संघयात्रा करके जब विमलशाह चन्द्रावती लौटा तो उसने बहुत बड़ा सधार्मिक वात्सल्य करके सधर्मी बन्धुओं की अपार संघभक्ति की और विपुल द्रव्य दान दिया । सम्राट् भीमदेव विमलशाह के शौर्य एवं पराक्रम से पहिले तो भयभीत-सा रहता था, परन्तु उसकी चन्द्रावती की जय और चन्द्रावती-राज्य में गूर्जरपति के नाम से शासन की घोषणा, पुनः गूर्जर भूमि के कट्टर शत्रु यवनों की विमल के हाथों पराजय श्रवण करके वह विमल को तथा उसकी देश एवं राजभक्ति को भली विध पहिचान गया । ऐसे न्यायी, निस्वार्थ एवं अद्वितीय योद्धा का अपमान करके भीमदेव अत्यन्त दुःख एवं पश्चात्ताप करने लगा । उसने विमल को प्रसन्न करने के अनेक प्रयत्न किये, एनः पत्तन में आकर सम्राट् की सेवा में रहने का आग्रह किया; परन्तु विमल ने चन्द्रावती और उसके प्रदेश में ही रहने का अपना दृढ़ निश्चय प्रकट किया। जब विमलशाह विमलाचलतीर्थ की संघयात्रा करके चन्द्रावती लौटा तो गुर्जरसम्राट् भीमदेव प्र० ने दंडनायक विमलशाह को चन्द्रावती एवं अन्य गुर्जरराज्य के अधीन राजाओं के ऊपर निरीक्षक नियुक्त कर दिया। अजमेर, शाकंभरी और उन सब को एक स्थान पर परास्त करना अघटित-सी लगती है। मेरी समझ में ऐसी ऐतिहासिक घटनाएँ एकदम सांगोपांग असत्य नहीं हो सकती हैं। वर्णन में अंतर भले ही न्यूनाधिक जा सकता है । महमूद के चले जाने पर भी गुजरात, कन्नौज, सिंध, उत्तर-पश्चिमी भारत पर उसका अवश्य प्रभाव रहा है। अतः यह बहुत सम्भव है कि विमलशाह जैसे पराक्रमी दंडनायक से उसकी फौज से अवश्य मुठभेड़ हुई है। यह अधिक सम्भव लगता है कि यवनसैन्य में बारह उन्च कोटि के सामन्त अथवा सैन्य- पदाधिकारी होंगे। उन्च यवनपदाधिकारी सुल्तान भी कहे जा सकते हैं। H. M. 1. खरतरगच्छ की एक पट्टावली में जिसकी रचना सत्तरवीं शताब्दी में हुई प्रतीत होती है, वर्द्धमानसूरि का परिचय देते हुए लेखक ने लिखा है, 'गाजण वि १३ पातिशा होना छत्रोना उछालक, चन्द्रावती नगरीना स्थापक विमल दंडनायके करविल विमलवसति मी ध्यानबलथी, वश करेल वालीनाह क्षेत्रपाले प्रकट करेल वज्रमय आदीश्वर मूर्तिना तेश्रो स्थापक हता ।' - गू० म० पृ० ६७ पर दिये चरण लेख नं० १७. गाजणावि का अर्थ गजनवी है। उक्त अंश से भी यही सिद्ध होता है कि दंडनायक विमल ने १३ गजनवी सुल्तानों को परास्त: किया था | कहीं २ बारह और कही २ तेरह सुल्तानों को विमल ने परारत किये के उल्लेख मिलते हैं । जै० सा० सं० इति पृ० २१०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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