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________________ :: प्राग्वाट इतिहास :: ६६ ] [ द्वितीय जीवित अवस्था में ही क्रमशः महामात्यपद एवं दंडनायकपदों पर आरूढ़ हो चुके थे । पत्तनवासी श्रे० श्रीदत्त की गुणशीला एवं अति रूपवती कन्या श्रीदेवी के साथ में विमल का विवाह हुआ था । महामात्य नेढ़ जैसा ऊपर कहा जा चुका है, नेढ़ महात्मा वीर का ज्येष्ठ पुत्र था । नेढ़ प्रखर बुद्धिमान, धर्मात्मा एवं शान्तप्रकृति पुरुष था । गुर्जर सम्राट् भीमदेव प्रथम के शासन समय में यह महामात्य रहा । गूर्जर - महामात्यों में दंडनायक विमल का ज्येष्ठ अपने स्वाभिमान के लिये प्रसिद्ध रहा है । अतिरिक्त इन अनेक गुणों के वह आता महामात्य नेद महादानी तथा दृढ़ जैन श्रावक था । महाबलाधिकारी दंडनायक विमल यह नेढ़ का कनिष्ठ भ्राता था। यह बचपन से ही अत्यन्त वीर एवं निडर था । विमल को धनुषविद्या, घुड़सवारी और अन्य अस्त्र-शस्त्र के प्रयोगों में बड़ी रुचि थी। वह ज्यों-ज्यों बड़ा हुआ, उसकी वीरता एवं निडरता की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी । विमल जैसा वीर एवं निडर था, वैसा विमल का दंडनायक बनना ही द्वितीय रूपवान, गुणवान, ब्रह्मत्रती, धर्मव्रती था । विमल को अनेक गुणों में अद्वितीय देखकर उस समय के लोग कल्पना करने लगे थे कि उसको ये सारे विशिष्ट गुण आरासण की अम्बिकादेवी ने उसके शील और धर्मव्रत पर प्रसन्न होकर प्रदान किये हैं । कुछ भी हो विमल अद्वितीय धनुर्धर - योद्धा वह सौराष्ट्र, कुंकण, दम्भण, सजाये, चीखली, सौपारक आदि अनेक प्रदेशों के राजाओं को परास्त कर चुका था तथा चन्द्रावती को अधीन करके वहीं शासन कर रहा था । उपरति इनके वि० सं० २०८५ में पिता की मृत्यु के समय और इससे भी पूर्व नेढ़ और विमल योग्य एवं महत्वशाली पदों पर आरूढ़ हो चुके थे। *तत्थ य निहरिणयदोसो पर्यायकमलोदश्रो दिणयरो व्व । सिरिभीमएवरज्जे नेढ़ो त्ति महामई पढ़मो ॥ D. C. M. P. (G. O. V, LXX VI.) P. 254 ( चन्द्रप्रभस्वामि-चरित्र) श्रीमन्नेदौ धीधनो धीरचेता श्रासीन्मंत्री जैनधर्मै कनिष्ठः । श्राद्यः पुत्रस्तस्य मानी महेच्छः भोगी बन्धुपद्माकरेंदुः ॥ ६ ॥ श्र० प्रा० जै० ले० स० भा० २ लेखाङ्क ५१ (विमलवसतिगत प्रशस्ति) विमलवसति से सम्बन्धित हस्तिशाला में विनिर्मित दश हाथियों में एक हाथी महामात्य नेढ़ के स्मरणार्थ बनवाया गया है:(४) सं० १२०४ फागु (ल्गु) ण सुदि १० शनौ दिने महामात्य श्री नेढ़कस्य । - प्र० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ लेखाङ्क ३५१ महामात्य नेढ़ का इससे अधिक उल्लेख नहीं मिलता है ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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