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________________ ५२ ] :: प्रावार- इतिहास : बीसा - मारवाड़ी-पोरवाल | द्वितीय जोधपुर-राज्य के दक्षिण में बाली, देसूरी, जालोर, भीनमाल, जसर्वतपुर के प्रगणों के प्राय: अधिकांश ग्रामों में उक्त नगरों में और अन्य नगर, कस्बों में और सिरोही के राज्य भर में या यो भी कह सकते हैं कि प्राचीन समय में कहे जाने वाले श्राग्वाट प्रदेश में ही इस शाखा के घर बसे हुये हैं। ये सर्व वृद्धसज्जनीय (बीसा) पोरवाल कहे जाते हैं। इस शाखा के प्रायः अधिकांश कुलों के गोत्र क्षत्रियज्ञाति के हैं और विक्रम की आठवीं शताब्दी में अधिकांशतः जैनधर्म में दीक्षित हुये थे । जैसा आगे के पृष्ठों से सिद्ध होगा आज इस शाखा के प्रायः अधिकांशतः घर धन की दृष्टि से सुखी और सम्पन्न हैं, जिनकी बम्बई- प्रदेश और मद्रास, बेजवाड़ा के गंटूर जिलों में finger हैं और बड़े २ व्यापार करते हैं। मारवाड़ में इनका कोई व्यापार-धंधा नहीं है । कुछ लोग जपुर और पाली में अवश्य सोना-चाँदी अथवा आड़त एवं थोक माल की दुकानें करते हैं । मालवा में उज्जैन, इन्दौर, र, रतलाम, जैसे बड़े २ नगरों में भी कुछ लोग व्यापार-धन्धा करते हैं । इस शाखा के कुछ घर सिरोही के ऐयाशी राजा उदयभाण से झगड़ा हो जाने से सिरोही (प्रमुख) से और सिरोही - राज्य के कुछ अन्य ग्रामों से लगभग डेढ़ सौ से कम वर्ष हुये होंगे रतलाम में सर्व प्रथम जाकर बसे थे और फिर वहाँ से धीरे २ अन्य ग्राम, नगरों में फैल गये । मालवा के कुछ एक प्रमुख नगरों में बीसा - मारवाड़ी पौरवालो का कई शताब्दियों पूर्व भी निवास थाही । पहिले के बसे हुये और पीछे से आकर बसे हुये बीसा - मारवाड़ी - पौरवाल घरों की गणना 'पारवाड़ - महाजनो' का इतिहास' के लेखक देवासनिवासी ठक्कुर लक्ष्मणसिंह ने ता० २२-६- १६२५ में की थी । यद्यपि वह . अपूर्ण प्रतीत होती है, फिर भी इतना अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है कि इस शाखा के लगभग ३०० ३५० घर जिनमें स्त्री-पुरुष, बच्चे लगभग १५०० - १६०० होंगे । आज मालवा के छोटे-बड़े ग्राम नगरों में निवास करते हैं । प्रमुख नगरों के नाम नीचे दिये जाते हैं: O देवास, इन्दौर, शहजहाँपुर, भरेड़, दुवाड़ा, नलखेड़ा, भोपाल, रतलाम, सारंगपुर, कानड़, आगर, कुक्षी, धार, उज्जैन, मौना, राजगढ़, अलिराजपुर, सुजाणपुर । उक्त कुलों के कुलगुरु मारवाड़ में सेवाड़ी, बाली, घाणेराव, सोजत तथा सिरोही, सियाणादि ग्राम, नगरों में रहते हैं और मालवा में पहिले और पीछे से जाकर बसने वाले कुलों का बहुत दूर होने के कारण स्वभावतः कुलगुरुओं से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि पूर्व के बसे हुये कुलों के गोत्र तो कभी के विलुप्त प्रायः हैं। पीछे से मालवा में जाकर बसने वाले कुल जब सर्व प्रथम रतलाम में जाकर बसे थे, तब रतलाम के सेवड़े लोग इनका कुल वर्णन लिखने लगे थे और कुछ वर्षों तक वे लिखते भी रहे, परन्तु पश्चात् उनमें परस्पर किसी बात पर इनसे झगड़ा हो गया और उन्होंने इनके कुलों का वर्णन लिखना ही बन्द कर दिया और sara का जो कुछ लिखा हुआ था, उन पुस्तक, कहियों को कुओं में डाल दिया । उक्त दोनों कारणों से इनमें गोत्रों की विद्यमानता शिथिल बन गई । परन्तु मारवाड़ में रहे हुये कुली' के गोत्र जैसा वाली, सेवाड़ी, सिरोही, घाणेराव में स्थापिंत कुलगुरु-पौषधशालाओं से प्राप्त - गोत्र सूचियों से सिद्ध है ज्यों के त्यों विद्यमाना है ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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