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________________ प्राग्वाट-इतिहास प्रथम खंड महावीर के पूर्व और उनके समय में भारत वर्तमान युग को महावीरकाल मी कह सकते हैं, जिसका इतिहास की दृष्टि से प्रारंम विक्रम संवत् से पूर्व पांचवीं शताब्दी में जैन तीर्थकर भगवान् महावीर के निर्वाण-संवत् से होता है। कुरुक्षेत्र के महामारत में रणप्रिय बाह्मणवर्ग और क्रियाकाण्ड योद्धाओं का समय नष्टप्राय हो गया था। भारत की राजश्री नष्ट हो गई थी। मारत में हिंसावाद ... में महान् परिवर्तन होने वाला था। ब्राह्मणवर्ग का वर्चस्व उत्तरीचर बढ़ने लगा था। वर्ण-व्यवस्था कठोर बनती जा रही थी। ई० स० पू० १००० से ई० स० पू० २०० वर्षों का अन्तर बुद्धिवाद का युग समझा जाता है। इस युग में वर्णाश्रम-पद्धति के नियम अत्यन्त कठोर और दुःखद हो उठे थे। इसका यह परिणाम निकला कि धर्म के क्षेत्र में शद्र वर्ण का प्रवेश भी अशक्य हो गया था। तेवीसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ ने इस बुद्धिवाद के युग में अवतरित होकर भारत की आर्य-भूमि पर बढ़ते हुए मिथ्याचार के प्रति भारी विशेष प्रदर्शित किया । भगवान महावीर के निर्वाण से २५० वर्ष पूर्व १०० वर्ष की आयु भोग कर ये मोक्षगति को प्राप्त हुये थे। ब्राह्मणवर्ग प्रथम राजा एवं सामंतों के आश्रित था, पीछे वह उनका कृपापात्र बना और तत्पश्चात् गुरुपद पर प्रतिष्ठित हुआ। ब्राह्मण पंडितों ने ब्राह्मण एवं अपने गुरुपद का अपरिमित गौरव स्थापित किया और ऐसी-ऐसी निर्जीव कथा, कहानियाँ, दृष्टांत प्रचारित किये कि जनसमूह गुरु को ईश्वर से भी बढ़ कर समझने लगा । परिणाम . - श्री पार्श्वनिर्वाणात् पश्चाशदधिकवर्षशतद्वयेन श्री वीरनिर्वाणम्-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका । पृष्ठ १३२
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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