SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9. पंच-बालयति वन्दना (दोहा) पंच बालयति नित बसो, मेरे हृदय मँझार। जिनके उर में बस रहा, प्रिय चैतन्य कुमार। (वीरछन्द) धन्य-धन्य हे वासुपूज्य जिन ! गुण अनन्त में करो निवास, निज आश्रित परिणति में शाश्वत महक रही चैतन्य-सुवास। सत् सामान्य सदा लखते हो क्षायिक दर्शन से अविराम, तेरे दर्शन से निज दर्शन पाकर हर्षित हूँ गुणखान । मोह-मल्ल पर विजय प्राप्त कर महाबली हे मल्लि जिनेश!, निज गुण-परिणति में शोभित हो शाश्वत मल्लिनाथ परमेश। प्रतिपल लोकालोक निरखते केवलज्ञान स्वरूप चिदेश, विकसित हो चित् लोक हमारा तव किरणों से सदा दिनेश ॥ राजमती तज नेमि जिनेश्वर ! शाश्वत सुख में लीन सदा, भोक्ता-भोग्य विकल्प विलयकर निज में निज का भोग सदा। मोह रहित निर्मल परिणति में करते प्रभुवर सदा विराम, गुण अनन्त का स्वाद तुम्हारे सुख में बसता है अविराम॥ आत्म-पराक्रम निरख आपका कमठ शत्रु भी हुआ परास्त, क्षायिक श्रेणी आरोहण कर मोह शत्रु को किया विनष्ट। पार्श्वबिम्ब के चरण युगल में क्यों बसता यह सर्प कहो ?, बल अनन्त लखकर जिनवर का चूर कर्म का दर्प अहो। क्षायिक दर्शन ज्ञान वीर्य से शोभित हो सन्मति भगवान !, भरतक्षेत्र के शासन नायक अन्तिम तीर्थंकर सुखखान। विश्व सरोज प्रकाशक जिनवर हो केवल-मार्तण्ड महान, अर्घ्य समर्पित चरण-कमल में वन्दन वर्धमान भगवान ॥
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy