SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगल-भावना शासननायक श्री परमपूज्य महावीरस्वामी से लेकर श्री कुन्दकुन्द आदि आचार्यों द्वारा प्रणीत शाश्वत सुख के मार्ग के वर्तमानकालीन उद्घाटक सम्यग्दर्शन युगप्रवर्तक पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी को एवं तद्मार्गानुसारी स्वानुभूति विभूषित पूज्य बहनश्री को अत्यंत भावपूर्वक नमस्कार। ___ हर सुबह चार बजे से भी पहले उठकर पूज्यगुरुदेवश्री सर्व प्रथम जिनका नियमित रूप से स्मरण-स्वाध्याय-चिंतन करते थे, उन १७५ बोलों से बहुत मुमुक्षुगण परिचित नहीं हैं, अतः अगली फाल्गुन अष्टान्हिका के अवसर पर पूज्य श्री कानजीस्वामी स्मारक ट्रस्ट के देवलाली संकुल में होनेवाले विधानपूजन के साथ-साथ पूज्य "गुरुदेवश्री के नित्यक्रम के १७५ बोल" - इस विषय पर आठ दिन के शिविर का आयोजन मुमुक्षु ओफ नोर्थ अमेरीका (मोना) द्वारा होने जा रहा है - यह सुनकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है। इस प्रसंग पर शिविरार्थियों के लिये तैयार की गयी इस लघु पुस्तिका में इन बोलों का विशिष्ट विद्वानों द्वारा लिखित संक्षिप्त सारांश सहित संकलन किया गया है। मुझे आशा है कि देश-विदेश में बसते सभी मुमुक्षु भाई-बहनें इस संकलन से लाभान्वित होंगे और इन १७५ बोलों को अपने दैनिक नित्यक्रम में आवश्यक रूप से समाविष्ट करेंगे। मुझे यह बताते भी अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि मंगलायतन विश्वविद्यालय में इस साल से नये दर्शन-विज्ञान विभाग की स्थापना की गयी है, जिसके अंतर्गत् 'मोना' के सुझाव के अनुसार जैनदर्शन का शिक्षण देश-विदेश में बसते छात्रों को पत्र-व्यवहार के माध्यम से देने के लिये आवश्यक तैयारियाँ चल रही हैं। __"दृष्टि का विषय और भेदज्ञान की प्रयोगविधि" - इस विषय पर गत साल में आयोजित किये गये शिविर जैसे ही 'मोना' का यह दूसरा प्रयास भी कुन्दकुन्द कहान तत्त्वावधान में एक नया सिमाचिन्ह बनें और दुनियाभर के मुमुक्षु एक 'अखिल विश्व मुमुक्षु परिवार' के रूप में संगठित, होकर कार्यान्वित हों - ऐसा “मोना' का स्वप्न शीघ्र साकार बनें - ऐसी मंगल भावना भाता हूँ। - पवनकुमार जैन, तीर्थधाम मंगलायतन, अलीगढ
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy