________________
[नन्दी आदि गाथादि-अकारादि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा
* यह प्रत “श्री नन्द्यादिगाथाद्यकारादि के नामसे सन १९२८ (विक्रम संवत १९८४) में 'श्री आगमोदय समिति' द्वारा प्रकाशित हुई, इस
के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी महाराज साहेब |
* पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'नन्दी, अनुयोगद्वार, पिंदनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति, आवश्यक, | दशवैकालिक, उत्तराध्ययन ये सात आगमसूत्रो के मूलसूत्र एवं उस पे पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था । उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा आदि थे उन सभी के 'अकारादि' क्रमांकन किये थे । वे 'नन्दी आदि सात सूत्रो के अकारादि' को इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है । अर्थात् नन्दिसूत्र आदि सप्त सूत्रो के गाथादि-अकारादि के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है ।
* पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह अंगसूत्रो और उपांग तथा प्रकीर्णक आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्रादि - अकारादि की भी रचना, संपादन और प्रकाशन किया है ।
* हमारा ये प्रयास क्यों?* आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थान प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसे वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके |
* पूज्यपाद आगमोद्धारकश्री ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है ।
* अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है।
~5~
www.
मुनि दीपरत्नसागर.