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द्वारा सर्वथा अनित्य एकान्त की विस्तृत समीक्षा की गई है। ५५वीं कारिका द्वारा सर्वथा नित्य और सर्वथा अनित्य रूप सर्वथा उभय एकान्त की मीमांसा कर ५६ से ६० पर्यंत ५ कारिकाओं द्वारा वस्तु को कथंचित् नित्य, कथंचित् अनित्य आदि सप्तभंगात्मक अनेकान्तमयी सिद्ध कर परिच्छेद पूर्ण किया है। ४. चतुर्थ परिच्छेद :६१ से ७२ पर्यंत १२ कारिकाओं वाले इस परिच्छेद में वस्तु के भेदाभेदात्मक धर्म का विचार किया गया है। ६१ से ६६ पर्यंत ६ कारिकाओं द्वारा सर्वथा भेद एकान्त की तथा ६७ से ६९ पर्यंत तीन कारिकाओं द्वारा सर्वथा अभेद एकान्त की मीमांसा कर, ७०वीं कारिका द्वारा सर्वथा भेदाभेदरूप उभय एकान्त तथा सर्वथा अवाच्यरूप एकान्त की समीक्षा करके, अन्त में ७१-७२ पर्यंत दो कारिकाओं द्वारा कथंचित् भेदाभेदात्मक वस्तु को सप्तभंगात्मक सिद्ध कर परिच्छेद पूर्ण किया है। ५. पंचम परिच्छेद :७३ से ७५ पर्यंत ३ कारिकाओं वाले इस परिच्छेद की प्रथम ७३वीं कारिका द्वारा सर्वथा अपेक्षा एकान्त और सर्वथा अनपेक्षा एकान्त की मीमांसा कर, ७४वीं कारिका में सर्वथा उभय एकांत और सर्वथा अनुभय एकांत की समीक्षा की गई है। अंत में ७५वीं कारिका द्वारा कथंचित् अपेक्षा और कथंचित् अनपेक्षारूप धर्मों में सप्तभंगी की योजनाकर स्याद्वादनय से अनेकान्तात्मक वस्तु-स्वरूप की सिद्धि करते हुए यह प्रकरण पूर्ण किया है। ६. षष्ठम परिच्छेद : ७६ से ७८ पर्यंत ३ कारिकाओं वाले इस परिच्छेद की प्रथम ७६वीं कारिका द्वारा सर्वथा हेतुवाद, सर्वथा अहेतुवाद रूप एकान्त मान्यताओं की समीक्षा कर, ७७वीं कारिका में सर्वथा हेतुअहेतुरूप उभय एकान्त और अवाच्यता एकांत की मीमांसा कर, अंत में ७८वीं कारिका द्वारा कथंचित् हेतुवाद, कथंचित् अहेतुवाद को सप्तभंगी द्वारा स्पष्ट कर स्याद्वाद शैली द्वारा अनेकान्तात्मक वस्तु-स्वरूप की सिद्धि करते हुए प्रकरण पूर्ण किया है। ७. सप्तम परिच्छेद : ७९ से ८७ पर्यंत ९ कारिकाओं वाले इस परिच्छेद में सर्वप्रथम ७९-८० पर्यंत दो कारिकाओं द्वारा सर्वथा ज्ञान एकान्त की
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/२१० -