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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान प्रमेयत्व गुण की महिमा से आत्मा का कर सकता ज्ञान।
पाप कर्म तज देता भय से जान रहे अरहंत महान || | अर्थ- यह शुद्धचिद्रूप का स्मरण मोक्षरूप वृक्ष का कारण है। संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिये नाव है। दुःखरूपी भयंकर बन के लिये दावानल है। कर्मो से भीत मनुष्यों के लिये सुरक्षित सुदृढ़ किला है। विकल्प रूपी रज के उड़ाने के लिये पवन का समूह है। पापों को रोकने वाला है। मोहरूप सुभट के जीतने के लिये शस्त्र है। नरक आदि अशुभपर्याय रूपी रोगों के नाश करने के लिये उत्तम अव्यर्थ औषध है। एवं तप विद्या और अनेक गुणों का घर है। २. ॐ ह्रीं विकल्परजरहितनिरागसस्वरूपाय नमः ।
निरामयस्वरूपोऽहम् ।
वीरछंद यही शुद्ध चिद्रूप स्मरण मोक्ष वृक्ष का कारण जान । भव सागर से पार उतरने को ये ही उत्तम जलयान || दुख रूपी वन भस्म हेतु दावानल की ज्वाला सम है | कर्मो से भयभीत मनुज को सुदृढ़ किला सर्वोतम है ॥ पवन समान विकल्प धूल को यह सम्पूर्ण उड़ाता है । पापों का अवरोधक मोह सुभट पर यह जय पाता है || नरकादिक पयायों से सर्वथा जीव हो जाता मुक्त ।
तप विद्या आदिक गुण द्वारा गुण अनंत से होता युक्त ॥२॥ ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(३) क्षत्तृटरुगवातशीतातपजलवचसः शास्त्रराजादिभीभ्योभार्यापुत्रारिनै:स्वनलनिगडवाद्यश्वैरकंटकेभ्यः । संयोगायोगदंशिप्रपतनरजसो मानभंगादिकेभ्यो
जातं दुःखं न विदुमः क्व च पटति नृणां शुद्धचिद्रूपभाजाम् ॥३॥ अर्थ संसार में जीवों को क्षुधा तृषा रोग वात ठंड उष्णता जल कठोरवचन शस्त्र राजा स्त्री पुत्र शत्रु निर्धनता अग्नि बेड़ी गौ भैंस घोड़े धन कंटक संयोग वियोग डांस मच्छर सतन धूलि मानभंग आदि से उत्पन्न हुये अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं। परन्तु न मालूम