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४२ तत्त्वज्ञान तरंगिणी प्रथम अध्याय पूजन है स्वतंत्र अस्तित्व द्रव्य का हो जाता है जब यह ज्ञान।
तब पर में एकत्व ममत्व बुद्धि का हो जाता अवसान || के ज्ञान से पहिचाने । ११. ॐ ह्रीं स्मरणपर्यारहिताखण्डज्ञानस्वरूपाय नमः ।
शान्तस्वरूपोऽहम् ।
वीरछंद स्वपर विवेक बुद्धि है जिनकी वही जानते हैं चिद्रूप । दर्शन ज्ञान स्वरूप आत्मा का निर्णय ही है शिवरूप || बाल तरुण वृद्धावस्था अरु क्रोध मान मायादि कषाय । पर्वत उदधि रूप रस इन्द्रिय विषय ज्ञान में सारे आय ॥ आदि आदि पर पदार्थ के गुण भेद आदि सबको जानो।
इन सबसे है भिन्न प्रथक चिद्रूप शुद्ध यह पहचानो ॥११॥ ॐ ह्रीं प्रथम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(१२) ज्ञप्त्वा दृक् चिदित ज्ञेया सा रूपं यस्य वर्तते ।
स तथोक्तोन्यद्रव्येण मुक्तत्वात् शुद्ध इत्वसौ ॥१२॥ अर्थ- ज्ञान और दर्शन का नाम चित् है। जिसके यह विद्यमान हो वह चिद्रूप आत्मा कहा जाता है। तथा जिस प्रकार कीट कालिमा आदि अन्य द्रव्यों से रहित सुवर्ण शुद्धसुवर्ण कहलाता है । उसी प्रकार जिस समय यह चिद्रूप समस्त परद्रव्यों से रहित हो जाता है उस समय शुद्धचिद्रूप कहा जाता है। वही शुद्ध चिद्रूप निश्चय से मैं हूं इस प्रकार शुद्धचिद्रूपोऽहं इन छह वर्णो का परिष्कृत अर्थ समझना चाहिये । १२. ॐ ह्रीं ज्ञानदर्शनस्वरूपाय नमः ।
शुद्धोऽहम् ।
वीरचंद ज्ञान और दर्शन ही चित है जहाँ विद्य है यह चिद्रूप । जैसे कीट कालिमा विरहित होता शुद्ध स्वर्ण निज रूप॥ उसी भांति चिद्रूप शुद्ध है भाव द्रव्य नो कर्म रहित । कंचन सम ये सदा खरा है इसमें हो जाओ परिमित ॥१२॥