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________________ ४० तत्त्वज्ञान तरंगिणी प्रथम अध्याय पूजन जन्म मरण से रहित अनादि अनंत आत्मा का अस्तित्व । ऐसा ज्ञान, मरण भय क्षय कर दर्शाता है निज अस्तित्व ॥ (९) नो दृक् नो धीर्न वृत्तं न तप इह यतो नैव सौख्यं न शक्तिर्नादोषो नो गुणीतो न परम पुरुषः शुद्धचिदरूपतश्च । नोपादेयोप्यहेयो न च पररहितो ध्येयरूपो न पूज्योनान्योत्कृष्टच तस्मात्प्रतिसमयमहं तत्स्वरूपं स्मरामि ॥९॥ अर्थ- यह चिद्रूप ही सम्यक्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है। तप सुख शक्ति और दोषों का अभाव स्वरूप है। गुणवान और परम पुरुष है उपादेय ग्रहण करने योग्य और अहेय ( न त्यागने योग्य) है। पर परिणति से रहित ध्यान करने योग्य है। पूज्य और सर्वोत्कृष्ट है। किन्तु शुद्ध चिद्रूप से भिन्न सम्यग्दर्शन आदि कोई पदार्थ नहीं, इसलिये प्रति समय. मैं उसी का स्मरण मनन करता हूं । ९. ॐ ह्रीं सौख्यार्णवस्वरूपाय नमः । पवित्रोऽहम् | वीरछंद सम्यक् दर्शन ज्ञान चरित्र स्वरूप शुद्ध चिद्रूप महान । दोष रहित है तप सुख ज्ञान शक्ति से भूषित है गुणवान ॥ उपादेय है यह अहेय है पर परिणति बिन ध्याने योग्य । पूज्य तथा सर्वोत्कृष्ट है यही सुस्मरण करने योग्य ॥ किन्तु नहीं कोई पदार्थ चिद्रूप शुद्ध से है उत्कृष्ट । प्रतिपल प्रतिक्षण सतत चिन्तवन इसका करना हो आकृष्ट || इसे प्राप्त करने का श्रम ही परमोत्तम श्रम कहलाता । उड़ जाती भव की थकान सब जीव निराकुल हो जाता ॥९॥ ॐ ह्रीं प्रथम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । (१०) ज्ञेयो दृश्योऽपि चिद्रूपो ज्ञाता दृष्ट्रा स्वभावतः । न तथाऽन्यानि द्रव्याणि तस्माद् द्रव्योत्तमोस्ति सः ॥१०॥ 號
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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