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________________ २६२ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी त्रयोदशम अध्याय पूजन ज्ञान की महिमा नहीं हो राग का सम्मान हो । तो बताओ आत्मा का किस तरह कल्याण हो | नहीं ज्ञान पुष्पों की प्रभु गंध पायी । मेरी देह दुर्गंध से सड़ रही है । ये कामाग्नि तो मेरी बुझती नहीं है। मेरे अपने घर में अरे अड़ रही है || करूं क्या बताओ मुझे प्रभु सुमति दो | मैं सन्मार्ग पाऊँ स्वकल्याण के हित ॥ परम शुद्ध चिद्रूप ही नित्य ध्याऊ । __ सतत अष्ट कर्मो के अवसान के हित || ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमायः कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि । नहीं ज्ञान के चरु मिले आज तक प्रभु । . क्षुधा व्याधि वर्धक यह भोजन दुखद ही ॥ · नहीं तृप्ति की भावना उर में जागी । तो कैसे मिलेगा स्वपद निज सुखद ही ॥ करूं क्या बताओ मुझे प्रभु सुमति दो । ___मैं सन्मार्ग पाऊँ स्वकल्याण के हित || परम शुद्ध चिद्रूप ही नित्य ध्याऊं । सतत अष्ट कर्मो के अवसान के हित ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. । न निज ज्ञान के दीप अब तक जलाए । सदा घोर अज्ञान छाया ह्रदय में || तो विभ्रम का तम कैसे क्षय होगा हे प्रभु । मैं जाऊंगा कैसे कभी निज निलय में ||
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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