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9वीं शती से लेकर 16वीं शती तक इस भारत देश के मध्यवर्ती प्रदेशों में प्राकृत, अपभ्रंश व प्राचीन, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, ब्रज, अवधी, भोजपुरी व मैथिली प्रभृति देशी भाषाओं/ बोलियों में जो सहस्रों रचनाएं, काव्य, महाकाव्य, रासो, आल्हा-ऊदल, रामायण जैसी लोकप्रिय रचनाएं हुईं, उन बोलियों के लेखीय/अभिलेखीय ऐतिहासिक साक्ष्य विशेषत: अपभ्रंश जैन कृतियों की प्रशस्तियों व पुष्पिकाओं तथा जैन मंदिरों, मूर्तियों, वेदिकाओं व भित्तिशिल्पों पर लिखित व उत्कीर्ण लेखों/अभिलेखों से प्राप्त होते हैं। तत्देशीय व तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक, औद्योगिक व रीतिरिवाजों की सबसे प्रामाणिक जानकारी हमें इन जैन लेखों/ अभिलेखों से उपलब्ध होती है। वैसी ही एक अति महत्त्वपूर्ण कृति है-प्रस्तुत "पाटण-जैनधातु-प्रतिमा-लेख-संग्रह"। मध्यकालीन गुजरात के इतिहास गवेषकों और भाषिक-अध्येताओं के लिए अनिवार्य रूप से अध्ययन करने योग्य।
ISBN: 81-208-1709-5
Rs.650