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" नय-रहस्य उत्तर - क्योंकि संशय भी सात प्रकार के ही उत्पन्न होते हैं। प्रश्न - संशय सात प्रकार के क्यों उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - संशयों के विषयभूत धर्म भी सात प्रकार के होते हैं। . उक्त सात भंगों में पहला, दूसरा और चौथा - ये तीन एकल भंग हैं और शेष चार भंग संयोगी भंग हैं, जो एकल भंगों के संयोग से बनते हैं। इसप्रकार अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य असंयोगी मूल भंग हैं, अस्ति-नास्ति, अस्ति-अवक्तव्य और नास्ति-अवक्तव्य - ये तीन द्वि-संयोगी भंग हैं और अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य - यह एक त्रिसंयोगी भंग है। . प्रश्न 4 - एक ही द्रव्य सात भंगरूप कैसे हो सकता है? - उत्तर - आचार्य जयसेन, पंचास्तिकाय, गाथा 14 की टीका में इसीप्रकार का प्रश्न उठाकर, उसका समाधान निम्नप्रकार करते हैं -
"जिसप्रकार एक ही देवदत्त नामक पुरुष, मुख्य और गौण विवक्षा से अनेक प्रकार का हो जाता है, पुत्र की अपेक्षा पिता, पिता की अपेक्षा पुत्र ; मामा की अपेक्षा भानजा, भानजे की अपेक्षा मामा; पत्नी की अपेक्षा पति और बहिन की अपेक्षा भाई कहा जाता है; शत्रु की अपेक्षा शत्रु और मित्र की अपेक्षा मित्र कहा जाता है। इसी प्रकार एक द्रव्य, विभिन्न अपेक्षाओं से सात भंगवाला हो सकता है; उसके सात भंगरूप होने में कोई दोष नहीं है।
यह तो सामान्य कथन है, सूक्ष्म व्याख्यान में सत्, एक, नित्य आदि धर्मों में से प्रत्येक धर्म में भिन्न-भिन्न सप्तभंगी लगाई जानी चाहिए। किसप्रकार? स्याद् अस्ति, स्याद् नास्ति, स्याद् अस्ति-नास्ति, स्याद् अवक्तव्य