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नय - रहस्य
उत्तर किसी भी वस्तु का प्रतिपादन करते समय सर्वप्रथम यह प्रश्न खड़ा होता है कि वस्तु-स्वरूप का कथन सम्भव है या नहीं ? क्योंकि जिनागम में अनेक स्थान पर भगवान आत्मा को वचनातीत, विकल्पातीत कहा गया है।
श्रीमद् राजचन्द्र 'अपूर्व अवसर' काव्य में लिखते हैं जो पद झलके, श्री जिनवर के ज्ञान में, कह ने सके पर वह भी श्री भगवान जब । उस स्वरूप को अन्य वचन से क्या कहूँ ? अनुभवगोचर मात्र रहा वह ज्ञान जब ।।
यदि वस्तु स्वरूप कहा ही नहीं जा सकता तो उसके बारे में कहना-सुनना, पढ़ना-लिखना सब व्यर्थ है, किन्तु भगवान सर्वज्ञ की वाणी में वस्तु-स्वरूप कहा गया है और गणधर भगवन्तों ने उसे द्वादशांग में गूँथा है; अतः वस्तुस्वरूप सर्वथा अवक्तव्य नहीं, कथंचित् वक्तव्य भी है।
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फिर प्रश्न उठता है कि यदि वस्तु-स्वरूप कहा जा सकता है तो उसके बारे में क्या कहा जा सकता है? कैसे कहा जा सकता है ? और क्या नहीं कहा जा सकता ?
सप्तभंगी शैली इसी प्रश्न का उत्तर देती है कि वस्तु में विद्यमान अनन्त धर्मों को विधि- प्रतिषेध की पद्धति से तीन प्रकार से कहा जा सकता है तथा नहीं कहे जा सकने के सन्दर्भ में चार स्थितियाँ बनती हैं।
वस्तु के अस्तित्व के बारे में वक्तव्य और अवक्तव्य के सम्बन्ध में कुल सात परिस्थितियाँ ही बनती हैं। उनमें से कहे जा सकने के सन्दर्भ में तीन स्थितियाँ निम्न प्रकार हैं
1. अस्तित्व कहा जा सकता है 2. नास्तित्व कहा जा सकता है और
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