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अनेकान्त-स्याद्वाद एक धर्म की मुख्यता से वस्तु का वर्णन किया जाता है, लेकिन जिस समय किसी एक धर्म को मुख्य किया जाता है, उस समय उसका विरोधी धर्म या शेष अन्य धर्म स्वतः गौण हो जाते हैं अर्थात् उनके बारे में कुछ भी नहीं कहा जाता। ___ यह मुख्यता और गौणता वक्ता की इच्छानुसार वाणी और ज्ञान में होती है, वस्तु में नहीं। जो धर्म मुख्य किया जाता है, उसे विवक्षित या अर्पित कहते हैं और शेष धर्मों को अविवक्षित या
अनर्पित कहते हैं। वस्तु में सभी धर्म अनादि-अनन्त त्रिकाल विद्यमान रहते हैं।
प्रश्न 8 - स्याद्वाद शैली से कथन करने पर 'भी' और 'ही' का प्रयोग क्यों और किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर - 1. मुख्य धर्म का कथन करते हुए गौण धर्मों की सत्ता का ज्ञान कराने के लिए 'भी' शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे, आत्मा नित्य भी है - ऐसा कथन किया जाए तो इसका अर्थ यह होगा कि आत्मा नित्य तो है ही, वह अनित्य भी है, साथ ही उसमें अन्य अनन्त धर्म भी हैं। ___ इससे सिद्ध होता है कि 'भी' - यह शब्द समन्वय का सूचक नहीं है, अपितु अनुक्त धर्मों की सत्ता का सूचक है।
2. यदि अपेक्षा स्पष्ट न की जाए तो 'भी' का प्रयोग आवश्यक होता है। जैसे, आत्मा नित्य 'भी' है, लेकिन यदि अपेक्षा स्पष्ट की जाए तो 'ही' का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। जैसे, द्रव्यदृष्टि से आत्मा नित्य 'ही' है। इस प्रकार 'ही' हठ या दुराग्रह का प्रतीक नहीं है, अपितु दृढ़ता या स्पष्ट अपेक्षा का प्रतीक है, क्योंकि जिस अपेक्षा से बात कही जा रही है, उस अपेक्षा वस्तु वैसी 'ही' है।
3. 'भी' का अर्थ शायद या सम्भावना नहीं है, क्योंकि ये शब्द