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________________ प्रकाशकीय जिनागम में नय एक ऐसा प्रकरण है कि जिसके सम्बन्ध में सम्पूर्ण जैन समाज में अपार अन्धकार है। आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के प्रवचनों में जब निश्चयव्यवहारनयों की चर्चा आना आरम्भ हुई तो नयविषयक अज्ञान के कारण समाज आन्दोलित हो उठा। स्थिति यहाँ तक बिगड़ी कि समाज में स्थान-स्थान पर निश्चयपार्टी और व्यवहारपार्टी नाम से पार्टियाँ बन गईं। उक्त झगड़ों के समाधान की भावना से जब नयों के स्वरूप पर प्रवचन आरम्भ किये तो उसके परिणाम अनुकूल ही आये। अतः डॉ. भारिल्ल ने नयों के स्वरूप पर आत्मधर्म के सम्पादकीयों के रूप में विस्तार से लिखना आरम्भ किया। इस बात की भी आवश्यकता प्रतीत हुई कि सोनगढ़ से पर्दूषण के अवसर पर प्रवचन के लिए जानेवाले विद्वानों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। अतः गुरुदेव श्री कानजीस्वामी की उपस्थिति में सोनगढ़ में ही डॉ. साहब के नेतृत्व में प्रवचनकार प्रशिक्षण शिविर लगाये गये। डॉ. भारिल्ल ने उक्त शिविर में नयों के सन्दर्भ में कक्षा ली। यह कहते हए हमें गौरव हो रहा है कि उक्त कक्षा में निरीक्षण हेतु पण्डित रामजीभाई दोसी, पण्डित खीमचन्द भाई सेठ, पण्डित बाबूभाई मेहता जैसे विद्वान् तो बैठे ही, पूज्य गुरुदेवश्री भी विराजे। ___इसप्रकार के प्रयासों से सामाजिक झगड़े बहुत कुछ शान्त हो गये; परन्तु जब डॉ. भारिल्ल की अन्यतम कृति परमस्वभावप्रकाशक नयचक्र छपकर जन-जन तक पहुँची तो तत्सम्बन्धी वातावरण एकदम शान्त हो गया। यह कृति 6 संस्करणों के माध्यम से 38200 की संख्या में हिन्दी एवं गुजराती भाषा में प्रकाशित होकर समाज में पहुँच चुकी है। इस नय-रहस्य कृति के लेखक पण्डित अभयकुमारजी एवं सम्पादक डॉ. राकेशजी उस समय महाविद्यालय के प्रथम बैच के छात्र थे; अतः वे न केवल आरम्भ से ही इस प्रकरण से परिचित रहे हैं; अपितु इस विषय के सहज ही विशेषज्ञ हो गये। इन विषयों को पढ़ाते समय पण्डित अभयकुमारजी को जो अनुभव हुए; वे सब उनकी इस नय-रहस्य कृति में आ गये हैं। अतः यह कृति भी उक्त सन्दर्भ में उपयोगी ही साबित होगी। इस कृति के लेखन के लिए पण्डित अभयकुमारजी शास्त्री, सम्पादन के लिए डॉ. राकेशजी शास्त्री के साथ-साथ संजय शास्त्री के भी हम आभारी हैं कि उन्होंने इसके प्रूफ रीडिंग व मुद्रण में सहयोग किया है। प्रकाशन का भार जैन अध्यात्म एकेडमी ऑफ नॉर्थ अमेरिका ने उठाया है और कीमत कम करने वालों की सूची संलग्न है। वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मन्त्री नय-रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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