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[जिनागम के अनमोल रत्न
( 12 ) भगवती आराधना
पदमक्खरं च एक्कं पि जो ण रोचेदि सुत्तणिद्दिट्ठ । सेसं रोचंतो वि हुमिच्छादिट्ठी मुणे यव्वो ।।38 ।। जिसे जिनसूत्र में कहा एक भी पद और अक्षर नहीं रूचता, शेष में रूचि होते हुए भी निश्चय से उसे मिथ्यादृष्टि जानना चाहिये ।
एक्कं पि अक्खरं जो अरोचमाणो मरेज्जजिणदिट्ठ । सो वि कुजोणिणिबुड्डो किं पुण सव्वं अरोचंतो ।।61 ।।
जिन भगवान के द्वारा देखा गया एक भी अक्षर जिसे रूचता नहीं वह मरे तो कुयोनियों डूबता है, तब जिसे सब ही नहीं रूचता उसके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या है ? |
णिउणं विउलं शुद्धं णिकाचिदमणुत्तरं च सव्वहिदं । जिणवयणं कलुसहरं अहो य रत्ती य पढिदव्वं ॥ 168 ।। निपुण, विपुल, शुद्ध, अर्थ से पूर्ण, सर्वोत्कृष्ट और सब प्राणियों का हित करने वाला द्रव्य कर्म भावकर्म रूपी मल का नाशक जिनवचन रात-दिन पढ़ना चाहिये।
जह जह सुदमोग्गाहदि अदिसय रसपसरमसुदपुव्वं तु । तह तह पल्हादिज्दि नवनवसंवेगसड् ढाए । 1104 ।। जैसे-जैसे अतिशय अभिधेय से भरा, जिसे पहले कभी नहीं सुना, ऐसे श्रुत को अवगाहन करता है, तैसे-तैसे नई-नई धर्म श्रद्धा से आहलाद युक्त होता है ।
जं अण्णाणी कम्मं खवेदि भवसय सहस्सकोडिहिं । तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेदि अंतोमुहुत्तेण ।।107 ।। छट्ठदुमदसमट्टवालसेहिं अण्णाणियस्य जा सोही । तत्तो बहुगुण दरिया होज्ज द जिमिदस्स णाणिस्स ।।108 ।।