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प्रकाशकीय सम्पूर्ण जिनागम चारों अनुयोगों में निवद्ध है एवं समस्त द्वादशांगमयी जिनवाणी वीतरागता की पोषक है मानों जिनवाणी माँ के एक-एक शब्द में से अमृत का झरना झरता है...इसी के साथ आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य श्री कानजी स्वामी ने इन ग्रंथों पर आध्यात्मिक सारभूत प्रवचन करके और भी अधिक सरल एवं सुगम बना दिया है। ... प्रस्तुत कृति युवारत्न विद्वान पं. राजकुमारजी शास्त्री, खनियांधाना वाले, गुना जब पं. टोडरमल दि. जैन सिद्धान्त महाविद्यालय, जयपुर से उपाध्याय-शास्त्री आदि के अध्ययन पूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण कर मौ (भिण्ड, म.प्र.) में दस वर्ष रहे, वहाँ भी सरकारी जैन माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक के साथ-साथ जिनमंदिरजी में प्रातः एवं रात्रि दोनों समय मौ समाज को स्वाध्याय का लाभ देते हुए, उसी समय आपके द्वारा जिनागम के चालीस महत्वपूर्ण ग्रन्थों का दस वर्ष तक गहन अध्ययन पूर्वक मुख्य-मुख्य सारभूत विषयों को एक डायरी में लिपिबद्ध किया, जिसे वह प्रतिदिन स्वाध्याय पूर्वक चिन्तन-मनन करते हैं।
उक्त डायरी जब दो-तीन वर्ष पूर्व हम सभी ने देखी तभी से प्रकाशित कराने की भावना थी और उनकी स्वीकृति मिलते ही इसके प्रकाशन की रूपरेखा बनी तथा पूज्यश्री कानजी स्वामी की 121वीं जन्म जयंति (उपकार दिवस) के उपलक्ष्य में उक्त 'जिनागम के अनमोल रत्न' कृति प्रकाशित करते हुए हम सभी अत्यन्त गौरवान्वित एवं प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। ... हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि सभी आत्मार्थी/साधर्मी जन
अपने दैनिक स्वाध्याय में इस कृति को अवश्य अध्ययन/तत्त्वनिर्णय पूर्वक निरन्तर चिन्तन-मनन करेंगे तथा अपने मनुष्य जन्म को रत्नत्रय से सुरभित करेंगे। . ...
. इसके प्रकाशन में संकलनकर्ता पं. श्री राजकुमारजी शास्त्री गुना, मङ्गलकामना हेतु वाणीभूषण पं. ज्ञानचन्दजी सोनागिर, संपादन हेतु डॉ. मुकेश 'तन्मय' शास्त्री विदिशा एवं कम कीमत में ज्ञानदान स्वरूप सहयोगी राशि देने की जिन्होंने भावना व्यक्त की, उन सभी के हम हृदय से आभारी है। पुनश्च उक्त कृति सभी के आत्मकल्याण में निमित्तभूत हो। इसी पवित्र भावना के साथ।
मंत्री
कोषाध्यक्ष कमलकुमार जैन 'रेडीमेड' सुगनचन्द जैन 'बंधु' राजकुमार जैन एवं समस्त सदस्यगण, आचार्य कुन्दकुन्द साहित्य प्रकाशन समिति, गुना फर्म बाबूलाल प्रकाशचंद जैन
अध्यक्ष,