________________
228]
[जिनागम के अनमोल रत्न
(आत्मा के सिवाय अन्यत्र ज्ञान नहीं है) भेषमैं न ग्यान नहि ग्यान गुरू वर्तन मैं ,
मंत्र जंत्र तंत्रमैं न ग्यान की कहानी है ।। ग्रंथमैं न ग्यान नहि ग्यान कवि चातुरीमैं ,
बातनिमैं ग्यान नहि ग्यान कहा बानी है ।। तारौं भेष गुरूता कवित ग्रंथ मंत्र बात ,
इन” अतीत ग्यान चेतना निसानी है। ग्यानहीमैं ग्यान नहि ग्यान और ठौर कहूं, जाकै घट ग्यान सोई ग्यानका निदानी है ।।112॥
(दोहा) सर्व विसुद्धी द्वार यह, कह्यौ प्रगट सिवपंथ। कुन्दकुन्द मुनिराज कृत, पूरन भयौ गरंभ ।।129।।
(ग्रन्थकर्ता का नाम और ग्रन्थ की महिमा) कुन्दकुन्द मुनिराज प्रवीन, तिन्ह यह ग्रंथ इहालौ कीना ।। गाथा बद्ध सुप्राकृत वानी, गुरूपरंपरा रीति बखानी।130। भयौ गिरंथजगत विख्याता, सुनत महा सुख पावहि ग्याता।। जे नवरसजगमाहि बखानै, ते सबसमयसार रस सानै।131॥ ___ 12. साध्य-साधक द्वार : धन-सम्पत्तिसे मोह हटाने का उपाय चेतनजी तुम जागि विलोकहु, लागि रहे कहा मायाके ताई। आए कहींसौ कहीं तुम जाहुगे, माया रमेगी जहांकी तहाई।। माया तुम्हारी न जाति न पांति न, वंसकी वेलिन अंसकी झांई। दासी कियै विनु लातनि मारत, ऐसी अनीति न कीजै गुसांई।।।