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[जिनागम के अनमोल रत्न
(परमार्थ की शिक्षा) बानारसी कहै भैया भव्य सुनौ मेरी सीख,
कैहूं भांति कैसैंहूकै ऐसौ काजु कीजिए। एकहू मुहूरत मिथ्यातकौ विधुंस होइ ,
.. ग्यानकौं जगाइ अंस हंस खोजि लीजिए। वाहीको विचार वाकौ ध्यान यहै कौतूहल,
यौंही भरि जनम परम रस पीजिए। तजि भव-वासकौ विलास सविकाररूप , ...-अंतकरि मोहकौ अनंतकाल जीजिए ।।24।।
(जिनराज का यथार्थ स्वरूप) जिनपद नाहिं शरीरको, जिनपद चेतनमाँहि । जिनवर्नन कछु और है , यह जिनवर्नन नाहिं ।।27।।
(निजात्मा का सत्य स्वरूप) कहै विचच्छन पुरूष सदा मैं एक हौं।।
अपने रससौं भन्यौ आपनी टेक हौं । मोहकर्म मम नांहि नाहि भ्रमकूप है। ... सुद्ध चेतना सिंधु हमारौ रूप है ।।33 ।।
2. अजीवद्वार : श्री गुरूकी पारमार्थिक शिक्षा भैया जगवासी तू उदासी है} जगतसौं, . एक छ महीना उपदेस मेरौ मानु रे ।