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सत्यमेव जयते नानृतम्
ब्र. हेमचंद जैन, ‘हेम',भोपाल समय एवं सत्य दोनों महाकीमती है। आज आप समय को बर्बाद कर रहे हैं, कल समय आपको बर्बाद करे देगा। इसलिए हे बंधु ! आप अपने समय का सदुपयोग एवं प्रबंधन अपने धन की तरह करें। समय के सदुपयोग से समयसार की प्राप्ति होती है। तथा समय के दुरुपयोग से शुद्ध संसार की प्राप्ति होती है। ___ सत्य-असत्य कहाँ होता है? किसमें होता है? विचार कीजिए-धार्मिक दृष्टिकोण से या वस्तुस्वभाव से देखें तो कोई भी वस्तु सत् या असत् नहीं होती। इस उदा. से समझें कि-'यह घट है। इसमें तीन प्रकार की सत्ता है। घट'नामक पदार्थ की सत्ता है। घट को जानने वाले 'ज्ञान' की सत्ता है और घट 'शब्द' की भी सत्ता है। इसी प्रकार ‘पट' नामक पदार्थ,उसको जानने वाले ज्ञान एवं पट शब्द की भी जगत में सत्ता है। जिनकी सत्ता है, वे सभी सत्य है, इन तीनों का सुमेल हो तो ज्ञान भी सत्य, वाणी भी सत्य, और वस्तु तो सत्य है ही ! किंतु जब वस्तु, ज्ञान और वाणी का सुमेल न हो-मुँह से बोले ‘पट',और इशारा करें घट' की ओर, तो वाणी असत्य हो जायेगी। इसी प्रकार सामने तो हो 'घट' और हम उसे जाने पट,तो ज्ञान असत्य (मिथ्या) हो जायेगा। वस्तु तो असत्य होने से रही। वह तो कभी असत्य हो नहीं सकती। वह तो सदा ही स्व-स्वरूप से है ,पररूप से नहीं है। ____ अतः सिद्ध हुआ कि असत्य वस्तु में नहीं होता। बल्कि उसे जानने वाले ज्ञान में,या कहने वाली वाणी में होता है। अतः मैं तो कहता हूँ कि अज्ञानियों के ज्ञान, श्रद्धान और वाणी के अतिरिक्त लोक में असत्य की सत्ता ही नहीं है। सर्वत्र सत्य का ही साम्राज्य है।
वस्तुतः जगत पीला नहीं है, किंतु हमें पीलिया हो गया है, अतः जगत पीला दिखायी देता है। इसीप्रकार जगत में तो असत्य की सत्ता ही नहीं है,पर असत्य हमारी दृष्टि में ऐसा समा गया है कि वही जगत में दिखायी देता है।
सुधार भी जगत का नहीं, अपनी दृष्टि का, अपने ज्ञान का करना है। सत्य का उत्पादन नहीं करना है। सत्य तो है ही। जो जैसा है वही सत्य है। उसे सही जानना है, मानना है। सही जानना-मानना ही सत्य प्राप्त करना है और आत्म सत्य को प्राप्त कर मोह-राग-द्वेष का अभाव कर वीतरागता रूप परिणति होना ही +सत्य धर्म है।
. यदि मैं पट को पट कहूँ तो सत्य, किंतु पट को घट कहूँ तो असत्य है, झूठ है। मेरे कहने से पट-घट तो नहीं हो जायेगा। वह तो पट ही रहेगा। वस्तु में झूठ ने कहाँ प्रवेश किया? झूठ का प्रवेश तो वाणी में हुआ। इसीप्रकार यदि पट को घट जाने तो ज्ञान झूठा हुआ,वस्तु तो नहीं। मैंने.. पट को घट जाना-माना या कहा, इसमें पट का क्या अपराध है? गलती तो मेरे ज्ञान या वाणी..' में हुई है। गलती तो सदा ज्ञान या वाणी में होती है। वस्तु में नहीं। इसप्रकार यथार्थ को समझते हुए इस उदा. से अपने सत्य रूप का दर्शन करें।