________________
६७
निजध्रुवशुद्धात्मानुभव
प्रत्यक्ष प्रामाण्यसहित-अविरतसम्यक्त्वी के शुद्धात्मानुभूति की सप्रमाण सिद्धि-चारों अनुयोगों के आधार पर-संकलन
प.पू.अध्यात्मयोगी श्री १०८ वीरसागरजी महाराज(कृपया निम्नलिखित संकलन का विस्तृत विवेचन और भी अनेकों संदर्भो सहित उपरोक्त पुस्तिका में पढ़िए । छपी पुस्तकें समाप्त हो गयी हैं । ६४ पेजेस की पुस्तिका की झेराक्स प्रती २० रु. डाकखर्च सहित भेजने पर उपलब्ध हो सकती है।)
इस पुस्तक में पढ़िए(१) क्या शुद्धोपयोग ४ थे गुणस्थान में होता है? -
संदर्भ- समयसार टीका -जयसेनाचार्य- गाथा २०१, २०२ (२)क्या अविरती गृहस्थ को शुद्धात्मकानुभव होता है?
संदर्भ-समयसार टीका-श्री जयसेनाचार्य गाथा-३२०,प्रवचनसार टीकाश्री जयसेनाचार्य गाथा-२०-३३, (३) तत्त्वानुशासन - श्लोक ४६, ४७ - नागसेन मुनि - (४)धर्म्यध्यान का अर्थ-संदर्भ-कार्तिकेयानुप्रेक्षा- स्वामी कार्तिकेय, गाथा४७१,४७२, ४७३, (५) भावसंग्रह-आ.देवसानाचार्य-गाथा-३८१,३८२,३८३, (६) भावसंग्रह-आ.देवसानाचार्य-गाथा-३८३ का अर्थ
संदर्भ-प्रवचनसार-श्री जयसेनाचार्य-गाथा ८० (७) यदि सम्यक्त्वादि ४,५,६ वे गुणस्थानों का निर्णय बाह्य लक्षणों से कहे तो?
संदर्भ-धवल पुस्तक १/१५२ ,पंचास्तिकाय गाथा-१६६, नियमसार गाथा१४४, प्रवचनसार गाथा-७९ त.प्र.,समयसार गाथा-१५२, रत्नकरण्ड -
श्रावकाचार- श्लोक ३३, १०२ (८) प्रत्येक अंतर्मुहूर्त में शुभ और अशुभ उपयोग होता है। -
संदर्भ-प्रवचनसार गाथा- ९,२४८, बृहद् द्रव्यसंग्रह-गाथा ३४, कार्तिकेयअनुप्रेक्षा-गाथा ४७०, महापुराण श्लोक-३८,४४/२१ (९) शुद्धभावना का क्या अर्थ है? संदर्भ-प्रवचनसार गा.-२४८,बृहद् द्रव्यसंग्रह गाथा-२८ (१०) शुद्धात्मानुभव-संदर्भ- प्रवचनसार गाथा-२५४-तात्पर्यवृत्ति (११) वीतराग स्वसंवेदन- संदर्भ-समयसार तात्पर्यवृत्ति गाथा-९६ (१२) धर्म्यध्यान-संदर्भ-ज्ञानार्णव-४/१७ (१३) अनुभूति की समानता- संदर्भ-ज्ञानार्णव- २९/४५, १०४, महापुराण २१/११,
प्रवचनसार गाथा-१८१, स.सत्या-गाथा १८६, सर्वार्थ सिद्धि-गाथा-९/२९