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५८ पुनः समयसार गाथा १९ तात्पर्यवृत्ति टीका में - 'अप्रतिबुद्धः स्वसंवित्तिशून्यो बहिरात्माभवति तावत्कालमिति। अत्र भेदविज्ञानमूलांशुद्धात्मानुभूति स्वतः स्वयंबुद्धयापेक्षया ये लभंते ते पुरुषाः शुभाशुभ बहिर्द्रव्येषु विद्यमानेष्वपि मुकुरन्दवदविकारा भवन्तीति भावार्थः।'.. समयसार गाथा ५० से ५५ तक आत्मख्याति टीका में अनेक बार 'शुद्धात्मानुभूतेभिन्नत्वात्' शब्द आया है, जो ध्यान देने लायक है। ९. अविरतसम्यग्दृष्टि मोक्षमार्गी है। रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक ३३ में स्पष्ट लिखा है
गृहस्थो मोक्षमार्गस्थोनिर्मोहोनैव मोहवान् ।
अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः॥३३॥ . १०. शुभभाव से संवर-निर्जरा नहीं होती, प्रकृत में पुण्यबंध होता है और अघातिया कर्मों को पाप प्रकृतियों का आस्रव किंचित् रुक जाना(संवर?)संक्रमण हो जाना-पुण्यरूप परिणम जाना होता है परंतु आत्मगुण घातक धातिकर्मो का आना नहीं रुकता। देखो-प्रवचनसार गाथा १८०-१८१ की टीका
सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं ति भणिदमण्णेसु।
परिणामो णण्णगदो दुक्खक्खय कारणं समये ॥१८१॥ ११. 'आद्या. सम्यक्त्वचारित्रे द्वितीया ध्ननत्यणुव्रतं । तृतीया संयम तुर्या यथाख्यातं क्रुधादयः।' इसका अर्थ मैंने बिक्कुल सही लिखा है। क्यों कि मूल में 'सम्यक्त्वचारित्रे' शब्द है। आप मूल अर्थ में भी भूल निकाल रहे हैं? विचारणीय है। अस्तु ! आप पुनर्विचार करें। आगम-अध्यात्म विरूद्ध कुछ लिखा हो तो क्षमा करें। शेष शुभ, कृपादृष्टि बनाये रखें। पत्रोत्तर देवें।
भवदीय शिवाकांक्षी- ब्र. हेमचंद जैन ‘हेम' विशेष-११-१२ दिसंबर ०६ के पश्चात् मंगलायतन-अलीगढ़ जाने का विचार है। संभव हो तो पधारें। मिलकर खुशी होगी। - ब्र. हेमचंद जैन 'हेम' .
धर्म्यध्यान-आगम के आलोक में परमानंदसंयुक्तं, निर्विकारं निरामयम्। ध्यानहीना न पश्यन्ति, निजदेहे व्यवस्थितम्॥ ..... परमानंद स्तोत्रम् १॥ आनंद ब्रह्मणो रूपम् , निजदेहे व्यवस्थितम्।। ध्यानहीना न पश्यन्ति , जात्यंधा इव भास्करम् ।।.....परमानंद स्तोत्रम् ९॥ सध्यानं क्रियते भव्यैः मनो येन विलीयते। तत्क्षणं दृश्यते शुद्धं, चिच्चमत्कारत्नक्षणम्।।......परमानंद स्तोत्रम् १०।। निर्विकल्पसमुत्पन्नं ज्ञानमेवसुधारसम्। विवेक मंजुलिं कृत्वा, तत्पिबन्ति तपस्विनः ॥ ...परमानंद स्तोत्रम्