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सम्यक्त्व के बाह्य लक्षण प्रवृत्ति रूप तो नारकियों व तिर्यंचों में पाये ही नहीं जाते तो भी उनके निश्चय सम्यक्त्व विद्यमान रहता है। इसलिए अभिप्राय/मान्यता सम्यक् हुए बिना ज्ञानचारित्र भी सम्यक्पने को प्राप्त नहीं होते हैं।
जिज्ञासा ४ - क्षायिक सम्यग्दृष्टि श्रेणिक केजीव को नरक में निश्चय सम्यग्दर्शन है या व्यवहार या दोनों ?
महोदय ! आपने तो इसका समाधान ऐसे लिखकर किया है कि नरक में राजा श्रेणिक के जीव को मात्र व्यवहार सम्यग्दर्शन है, निश्चय सम्यग्दर्शन नहीं है-गजब ही कर दिया ? आपने जब यह धारणा ही बना ली हो कि निश्चय सम्यक्त्व तो निश्चय चारित्र का ही अविनाभावी है तब तो आप ऐसा ही लिखेंगे। क्षायिक सम्यग्दृष्टि को व्यवहार / सराग सम्यग्दृष्टि कहना अतिसाहस की बात है। कृपया मैंने सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, अमितगति श्रावकाचारादि के
उदा. प्रमाण दिये हैं, उनका अवलोकन करें। वहाँ पर स्पष्ट रूप से क्षायिक सम्यक्त्व को वीतराग एवं शेष दो ( औपशमिक क्षायोपशमिक) को सराग सम्यक्त्व कहा है । ( क्यों कि ये दोनों छूट जाते हैं, सादि अनंतकाल नहीं रहते हैं।) तथा जो आपने बृहद् द्रव्यसंग्रह में महाराजा भरत के क्षायिक सम्यग्दर्शन को व्यवहार सम्यग्दर्शन लिखा होने का प्रमाण दिया सो सराग अवस्था में निश्चय सम्यक्त्व तो है परंतु जो परमात्म प्रकाश २- १८ टीका का उद्धरण आप स्वयं जिज्ञासा १ के समाधान में दे आये हैं। उससे भी मिलान कर देखना। उनके गृहस्थावस्था में निश्चय सम्यक्त्व तो है, परंतु चारित्रमोह के उदय से स्थिरता नहीं है । तथा वे अशुभ से बचने के लिए शुभ क्रिया करते हैं, इसलिए शुभराग के संबंध से सराग सम्यग्दृष्टि है और इनके सम्यक्त्व को निश्चय सम्यक्त्व संज्ञा भी है क्यों कि वीतराग चारित्र से तन्मयी निश्चय सम्यक्त्व के परंपरया साधकपना है। वास्तव में विचार किया जावें तो गृहस्थावस्था में इनके वह सराग सम्यक्त्व कहा जाने वाला व्यवहार सम्यक्त्व ही है, ऐसा जानो ।
यहाँ पर मैं आप से जानना चाहता हूँ कि निश्चय चारित्र का अविनाभावी जो निश्चय वीतराग सम्यक्त्व है - होता है, उस समय दर्शनमोह की कौनसी प्रकृति का अभाव हो जाता है? अरे, वहाँ तो उसी निश्चय क्षायिक सम्यक्त्व की पर्याय है और उसमें अब क्या निर्मलता आनी बाकी है? मात्र चारित्र की सराग/अशुद्धावस्था मिटने से उस क्षायिक सम्यक्त्व को ही वीतराग सम्यक्त्व नाम दिया है। आगम में मात्र अनंतानुबंधी कषाय को ही द्विस्वभावी अर्थात् सम्यक्त्व एवं चारित्र की घातक (दर्शनमोह के साथ) कही है न कि अप्रत्याख्यानावरण या प्रत्याख्यानावरण को ! अतः आप आगम के आलोक में अवश्य ही इस बिंदु पर विचार करें। विज्ञेषु किम्धिकम् ।
जिज्ञासा ५ - औपशमिक क्षायोपशमिक, क्षायिक-इन तीनों प्रकार के सम्यग्दृष्टियों को 'क्या (आत्मानुभूति रहित) आत्मविश्वास एक सदृश होता है? या तीनों के आत्मविश्वास में कुछ अंतर रहता है?