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[१४] अवर मुनीश्वर सर्व संघके सप्त प्रकार जु।
लख अठबीस रु अधिक अष्टचालीस हजारसु ॥ इमि तीर्थेश्वर सकलके, सर्व मुनीश मिलाय ।*
अष्टद्रव्यकण थाल भरि, पूजों शीश नवाय ॥२५॥ ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकराणां एक हजार चारसौ बावन गणधर एवं सप्त प्रकारीय अठाईस लाख, अड़तालीस हजार समस्त मुनिवरेभ्यो जलाद्ययं निर्वपामीति स्वाहा ।
अथ मंडल प्रथम कोष्ठस्थ बुद्धि
ऋद्धिधारक मुनि पूजा
॥ स्थापना ॥ (गीता छन्द) बुद्धिऋद्धीश्वरा बुद्धिऋद्धीश्वरा,
अत्र आगच्छ आगच्छ तिष्ठो वरा । मम निकट, निकटहो, निकटहो, सर्वदा,
पूजिहों पूजिहों जोरि कर शर्मदा ॥ ॐ ह्रीं अष्टादश-बुद्धिऋद्धि-धारक सर्वमुनीश्वरा ! अत्र अवतर अवतर ! संवौषट् आह्वानम् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव सन्निधिकरणं ।
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यहाँ आदिपुराणके अनुसार गणधर एवं मुनियोंकी संख्या दी गई है। पूजाकी पुस्तकोंमें कई जगह अन्यथा आठ है, वह सही नहीं प्रतीत होता है।