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________________ 88 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना का चरम लक्ष्य माना गया है। इस विचार के पोषक जैमिनी और शबद हैं। स्वर्ग को दुःख से शून्य शुद्ध सुख का स्थान कहा गया है। स्वर्ग की प्राप्ति कर्म के द्वारा ही सम्भव है। जो स्वर्ग चाहते हैं, उन्हें कर्म करना चाहिए। स्वर्ग की प्राप्ति यज्ञ, बलि आदि कर्मों के द्वारा ही सम्भव है। मीमांसा के अनुसार उन्हीं कर्मों का पालन आवश्यक है जो 'धर्म' के अनुकूल हैं। मीमांसा वैदिक कर्मकाण्ड को ही धर्म मानती है। वेद नित्य ज्ञान के भण्डार तथा अपौरुषेय हैं। यज्ञ, बलि, हवन आदि के पालन का निर्देश वेद में निहित है, जिनके अनुष्ठान से ही व्यक्ति धर्म को अपना सकता है। अतः धर्म का अर्थ वेद-निहित कर्तव्य है। ऐसे कर्म जिनके अनुष्ठान में वेद सहमत नहीं है तथा जिन कर्मों का वेद में निषेध किया गया है, उनका परित्याग आवश्यक है। भीमांसा के मतानुसार अधर्म का अर्थ वेद के निषिद्ध कर्मों का त्याग है। इस प्रकार कर्तव्यता और अकर्तव्यता का आधार वैदिक वाक्य है। उत्तम जीवन वह है, जिसमें वेद के आदेशों का पालन होता है। मीमांसा दर्शन में कर्म पर अत्यधिक जोर दिया गया है। कर्म पर मीमांसकों ने इतना महत्त्व दिया है कि ईश्वर का स्थान गौण हो गया है। ईश्वर के गुणों का वर्णन मीमांसा में अप्राप्य है। यदि मीमांसा ईश्वर की सत्ता को मानता है तो इसलिए कि उनके नाम पर होम किया जाता है। ____मीमांसकों के अनुसार कर्म का उद्देश्य देवता को सन्तुष्ट करना नहीं है, अपितु आत्मा की शुद्धि है। यहाँ पर मीमांसा वैदिक युग की परम्परा का उल्लंघन करता है। वैदिक-युग में इन्द्र, वरुण, सूर्य, अग्नि आदि देवताओं को सन्तुष्ट करने के लिए ये किये जाते थे। यज्ञ के द्वारा देवताओं को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता था, ताकि वे इष्ट-साधन अथवा' अनिष्ट निवारण करें। मीमांसा इसके विपरीत यज्ञ को वेद का आदेश मानकर करने की सलाह देती है। वेद में अनेक प्रकार के कर्मों की चर्चा हुई है। वेद की मान्यता को स्वीकार करते हुए मीमांसा बतलाती है कि किन-किन कर्मों का पालन तथा किन-किन कर्मों का परित्याग करना चाहिए। (1) नित्य कर्म-नित्य कर्म वे कर्म हैं, जिन्हें प्रत्येक दिन व्यक्ति को
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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