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________________ 70 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना मोक्ष की प्राप्ति, सांख्य के अनुसार कर्म से सम्भव नहीं है। कर्म दुखात्मक होता है, अतः यदि मोक्ष को कर्म के द्वारा प्राप्त किया जाए तो मोक्ष भी दुखात्मक होगा। कर्म अनित्य है। यदि मोक्ष को कर्म से अपनाया जाये तो मोक्ष भी दुखात्मक होगा। कर्म यथार्थ स्वप्न की तरह होता है, इसलिए कर्म से मोक्ष को अपनाने का भाव भ्रान्ति-मूलक है। इसके विपरीत ज्ञान जागृत अनुभव की तरह यथार्थ होता है, इसलिए सम्यग्ज्ञान से जैसा ऊपर कहा गया है, मोक्ष प्राप्ति होती है। पुरुष और प्रकृति के भेद के ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहा जाता है; परन्तु इस ज्ञान को केवल मन से समझ लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस ज्ञान की साक्षात् अनुभूति भी परमावश्यक है। इस ज्ञान से आत्मा को साक्षात् अनुभूति होनी चाहिए कि वह शरीर, इन्द्रियों, बुद्धि और मन से भिन्न है। जब आत्मा को यह अनुभूति होती है कि मैं अनात्मा नहीं हूँ, मेरा कुछ नहीं है तो आत्मा मुक्त हो जाती है। जिस प्रकार रस्सी में साँप का जो भ्रम होता है। वह तभी दूर हो सकता है, जब रस्सी का प्रत्यक्ष ज्ञान हो जाए, उसी प्रकार आत्मा का यह भ्रम कि मैं शरीर, इन्द्रियाँ और बुद्धि से मुक्त हूँ, तभी दूर हो सकता है, जब आत्मा को इसकी विभिन्नता की साक्षात् अनुभूति हो जाए। इस अनुभूति को पाने के लिए आत्मा को मनन और निदिध्यासन की आवश्यकता होती है। सांख्य के कुछ अनुयायियों ने इसको पाने के लिए अष्टांग मार्ग का पालन करने का आदेश योगदर्शन में दिया है। ये मार्ग इसप्रकार हैं-(1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायाम (5) प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान (8) समाधि। इसके फलस्वरूप आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है। मोक्ष की अवस्था में आत्मा के नये गुण का प्रादुर्भाव नहीं होता है। आत्मा को अपने यथार्थ स्वरूप को पहचान लेना ही मोक्ष है। मोक्ष की अवस्था में आत्मा का शुद्ध चैतन्य निखर आता है। आत्मा उन सभी प्रकार के भ्रमों से जो उसे बन्धन ग्रस्त करते हैं, मुक्त हो जाती है। इस प्रकार अपूर्णता से पूर्णता की प्राप्ति को ही मोक्ष कहा जा सकता है। मोक्ष प्राप्ति के साथ ही साथ प्रकृति के सारे विकास रुक जाते हैं। प्रकृति को सांख्य ने एक नर्तकी के रूप में देखा है। जिस प्रकार नर्तकी दर्शकों के मनोरंजन के बाद नृत्य से विरक्त हो जाती है; उसी प्रकार प्रकृति अपने विभिन्न रूपों को पुरुष के सामने रखकर तथा पुरुष को मुक्त कराकर
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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