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68 . कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना है, क्योंकि प्रायः भारत के सभी दर्शनों में संसार की दुखमयता पर जोर दिया गया है।
सांख्य के अनुसार विश्व में तीन प्रकार के दुख पाये जाते हैं। तीन प्रकार के दुख ये हैं -
आध्यात्मिक दुःख-आध्यात्मिक दुःख उस दुःख को कहा जाता है, जो मनुष्य के निजी शरीर और मन से उत्पन्न होते हैं। मानसिक और शारीरिक व्याधियाँ ही आध्यात्मिक दुःख हैं। इस प्रकार के दुःख का उदाहरण भूख, सरदर्द, क्रोध, भय, द्वेष आदि हैं।
आधिभौतिक दुःख-आधिभौतिक दुःख वह है, जो बाह्य पदार्थों के प्रभाव से उत्पन्न होता है। यह काँटे का गड़ना, तीर का चुभना और पशुओं, पक्षियों आदि से प्राप्त होता है।
। आधिदैविक दुःख-इस प्रकार का दुःख बाह्य और अलौकिक कारण से उत्पन्न होता है। नक्षत्र, भूत-प्रेतादि से प्राप्त दुःख आधिदैविक दुःख कहा जाता है। सर्दी, गर्मी आदि से मिलने वाले दुःख भी आधिदैविक दुःख हैं।
मानव स्वभावतः इन तीन प्रकार के दुःखों से छुटकारा पाना चाहता है। चिकित्सा विज्ञान इन दुःखों से अस्थायी छुटकारा दिला सकता है; परन्तु मानव इन दुःखों से सदा के लिए छुटकारा पाना चाहता है। वह केवल वर्तमान दुःख से ही नहीं बचना चाहता है, अपितु भविष्य में मिलने वाले । दुःखों से भी छुटकारा पाना चाहता है। चिकित्सा विज्ञान उसकी इस इच्छा की तृप्ति करने में असमर्थ है। दुःखों का पूर्ण विनाश मोक्ष से ही सम्भव है।
____ मोक्ष का अर्थ त्रिविध दुःख का अभाव है। मोक्ष ही परम अपवर्ग या पुरुषार्थ है। यहाँ पर यह कह देना अनावश्यक न होगा कि धर्म और काम को परम पुरुषार्थ नहीं माना जा सकता; क्योंकि वे नाशवान हैं, इसके विपरीत मोक्ष नित्य है, अतः मोक्ष को परम पुरुषार्थ मानना प्रमाण संगत है।
____ सांख्य के मतानुसार पुरुष नित्य, अविनाशी और गुणों से शून्य है। जब पुरुष मुक्त है तो वह बंधनग्रस्त कैसे हो सकता है। सच पूछा जाए तो पुरुष बन्धन में नहीं पड़ता हैं, बल्कि उसे बन्धन का भ्रम हो जाता है। वह कारण-कार्य शृंखला से रहित है, वह देश और काल की सीमा से परे है। वहं अकर्ता है, क्योंकि वह प्रकृति और उसके व्यापारों का दृष्टा मात्र है।