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________________ 63 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना श्वेताश्वर, कठ आदि उपनिषदों में देखने को मिलता है । उपर्युक्त उपनिषदों में सांख्य के मौलिक प्रत्ययों, जैसे त्रिगुण, पुरुष, प्रकृति, अहंकार, तन्मात्रा आदि की चर्चा हुई है। उपनिषद के अतिरिक्त भगवद्गीता में प्रकृति और तीन गुणों का उल्लेख है 135 महाभारत में भी प्रकृति और पुरुष के भेद का विस्तृत वर्णन है । उपर्युक्त कृतियों में सांख्य दर्शन का उल्लेख उसकी प्राचीनता का पुष्ट और सबल प्रमाण है । साथ-ही-साथ इस दर्शन के मौलिक सिद्धान्तों की समीक्षा 'न्यायसूत्र' अन्तर्भूत है। इससे यह सिद्ध होता है कि न्यायसूत्र और ब्रह्मसूत्र के निर्माण के पूर्व सांख्य दर्शन का पूर्ण विकास हो चुका था । सांख्य-दर्शन प्राचीन दर्शन होने के साथ ही साथ मुख्यदर्शन भी है । यह सत्य है कि भारतवर्ष में जितने दार्शनिक सम्प्रदायों का विकास हुआ, उनमें वेदान्त सबसे प्रधान है; परन्तु वेदान्त दर्शन के बाद यदि यहाँ कोई महत्त्वपूर्ण दर्शन हुआ तो वह सांख्य ही है। प्रोफेसर मैक्समूलर ने भी वेदान्त के बाद सांख्य को ही महत्त्वपूर्ण माना है । यदि वेदान्त को प्रधान दर्शन कहें तो सांख्य को उप-प्रधान दर्शन कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल माने जाते हैं। इनके सम्बन्ध में प्रामाणिक ढंग से कुछ कहना कठिन प्रतीत होता है । कुछ लोगों ने कपिल को ब्रह्मा का पुत्र, कुछ लोगों ने विष्णु का अवतार तथा कुछ लोगों ने अग्नि का अवतार माना है। इन विचारों को भले ही हम किंवदंतियाँ कहकर टाल दें, किन्तु यह तो हमें मानना ही पड़ेगा कि कपिल एक विशिष्ट ऐतिहासिक व्यक्ति थे, जिन्होंने सांख्य दर्शन का प्रणयन किया। इनकी विशिष्टता का जीता-जागता उदाहरण हमें वहाँ देखने को मिलता है, जहाँ कृष्ण ने भगवद्गीता में कपिल को अपनी विभूतियों में गिनाया है। 'सिद्धानां कपिलो मुनिः ́ अर्थात् मैं सिद्धों में कपिल मुनि हूँ। डॉ. राधाकृष्णन् ने कपिल को बुद्ध से एक शताब्दी पूर्व माना है । सांख्य दर्शन द्वैतवाद का समर्थक है । चरम सत्ताएँ दो हैं, जिनमें एक को प्रकृति और दूसरी को पुरुष कहा जाता है। पुरुष और प्रकृति एक-दूसरे के प्रतिकूल हैं । द्वैतवादी दर्शन होने के कारण सांख्य न्याय के अनेकवाद का ही सिर्फ विरोध नहीं करता है, अपितु न्याय के ईश्वरवाद और
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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