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________________ 60 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना वैशेषिक दर्शन का विकास 300 ई. पूर्व हुआ माना जाता है। वैशेषिक के ज्ञान का आधार वैशेषिक सूत्र' कहा जाता है, जिसका रचयिता महर्षि कणाद को कहा जाता है। प्रशस्तपाद ने वैशेषिक सूत्र पर एक भाष्य लिखा, जिसे पदार्थ धर्म-संग्रह कहा जाता है। वैशेषिक दर्शन का ज्ञान श्रीधर द्वारा लिखित पदार्थ धर्म-संग्रह की टीका से भी मिलता है। . . न्याय और वैशेषिक को समान-तन्त्र कहलाने का प्रधान कारण यह है कि दोनों ने मोक्ष की प्राप्ति को जीवन का चरम लक्ष्य कहा है। मोक्ष दुःख विनाश की अवस्था है। दोनों ने माना है कि बन्धन का कारण अज्ञान है। अतः तत्त्वज्ञान के द्वारा मोक्ष को अपनाया जा सकता है। इस सामान्य लक्ष्य को मानने के कारण दोनों दर्शनों में परतन्त्रता का सम्बन्ध है |32 . न्याय-दर्शन का मूल उद्देश्य प्रमाण-शास्त्र और तर्कशास्त्र का प्रतिपादन करना है। प्रमाण-शास्त्र और तर्क शास्त्र के क्षेत्र में न्याय का योगदान अद्वितीय कहा जा सकता है। वैशेषिक दर्शन का उद्देश्य इसके विपरीत तत्त्वशास्त्र का प्रतिपादन कहा जा सकता है। वैशेषिक दर्शन में ईश्वर का स्वरूप : . न्याय-दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की व्याख्या पूर्ण रूप से हुई है। ईश्वर को प्रस्थापित करने के लिए न्याय ने प्रमाण का प्रयोग किया है। वैशेषिक दर्शन न्याय के ईश्वर सम्बन्धी विचारों को ग्रहण करता है। ईश्वर को सिद्ध करने के लिए न्याय में जितने प्रमाण दिये गये हैं, उन सबों की मान्यता वैशेषिक में है। न्याय की तरह वैशेषिक ने भी ईश्वर को विश्व का व्यवस्थापक तथा अदृष्ट का संचालक माना है, अतः न्याय की तरह वैशेषिक भी ईश्वरवाद का समर्थक है। जहाँ तक ईश्वर–शास्त्र का सम्बन्ध है, दोनों दर्शन एक-दूसरे पर आधारित हैं। . "वैशेषिक दर्शन में आत्मा की चर्चा पूर्णरूप से नहीं हुई है। कारण यह है कि न्याय का आत्मविचार वैशेषिक को पूर्णतः मान्य है। न्याय की तरह वैशेषिक ने भी आत्मा को स्वभावतः अचेतन कहा है। चैतन्य को आत्मा का आगन्तुक धर्म माना गया है।"33 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि न्याय और वैशेषिक दर्शन एक-दूसरे का ऋण स्वीकार करते हैं। न्याय की व्याख्या वैशेषिक के बिना अधूरी है। वैशेषिक की व्याख्या भी न्याय के बिना अधूरी है। दोनों दर्शन मिलकर एक ही दर्शन के दोः अविभाज्य अंग हैं। अतः दोनों दर्शनों को
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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