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________________ 56 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना भौतिक तत्त्वों से निर्मित हुई हैं। जिस प्रकार शरीर चैतन्य से शून्य है, उसी प्रकार ज्ञानेन्द्रियाँ भी चैतन्य - गुण से युक्त नहीं हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान के साधन हैं, आत्मा ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करती है । ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान नहीं हैं, जो ज्ञान नहीं है, उनका गुण चैतन्य को मानना भ्रान्तिमूलक है। आत्मा इसके विपरीत ज्ञाता है। इससे भी प्रमाणित होता है कि चैतन्य आत्मा का गुण है। 6 स्मृति या प्रत्यभिज्ञा को समझाने के लिए आत्मा को मानना आवश्यक है। यदि आत्मा को नहीं माना जाए तो स्मृति और प्रत्यभिज्ञा सम्भव नहीं हो सकते हैं । अब प्रश्न उठता है कि आत्मा का ज्ञान किस प्रकार होता है? प्राचीन नैयायिकों के मतानुसार आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं होती है। आत्मा का ज्ञान इनके अनुसार प्राप्त वचनों अथवा अनुमान से प्राप्त होता है। नव्य - नैयायिकों का कहना है कि आत्मा का ज्ञान मानस - प्रत्यक्ष से होता है । मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ आदि रूपों में ही आत्मा का मानस - प्रत्यक्ष होता है । बन्ध एवं मोक्ष विचार न्याय दर्शन में अन्य भारतीय दर्शनों की तरह जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है । मोक्ष के स्वरूप और उसके साधन की चर्चा करने के पूर्व बन्धन के सम्बन्ध में कुछ जानना अपेक्षित होगा । न्याय के मतानुसार आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और मन से भिन्न है; परन्तु अंज्ञान के कारण आत्मा, शरीर, इन्द्रिय अथवा मन से अपना पार्थक्य नहीं समझती । इसके विपरीत वह शरीर, इन्द्रिय और मन को अपना अंग समझने लगती है। इन विषयों के साथ वह तादात्म्यता हासिल करती है । इसे ही बन्धन कहते हैं । बन्धन की अवस्था में मानव मन में गलत धारणाएँ निवास करने लगती हैं । 27 इनमें कुछ गलत धारणाएँ निम्न हैं 1. अनात्म तत्त्व को आत्मा समझना । 2. क्षणिक वस्तु को स्थायी समझना । 3. दुख को सुख समझना । 4. अप्रिय वस्तु को प्रिय समझना । 5. कर्म एवं कर्म फल का निषेध करना । 6. अपवर्ग के सम्बन्ध में सन्देह करना ।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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