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36 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
- दर्शनों की संख्या और उनका वर्गीकरण .. .. - संख्या भारतीय दर्शन की बहुत-सी धाराओं का विकास हुआ, वे संख्या में कितनी हैं, इसका निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता है। इसका कारण यह है कि सुदूर अतीत से लेकर आज तक इनका विकास होता रहा है। इनमें से कुछ तो ऐसी भी हैं, जो बहुत ही कम प्रसिद्ध रही हैं और इसलिए प्रमुख दर्शनों की गणना में उनको स्थान नहीं मिल पाया। इसके अतिरिक्त इस अनिश्चय में गणनाकारों की अपनी रुचि भी इसमें बहुत बड़ी सीमा तक कारण रही है।
. किसी ने यदि एक का उल्लेख किया है तो दूसरे ने उसे छोड़ दिया. है। कहने का तात्पर्य यह है कि दर्शनों की वास्तविक संख्या के सम्बन्ध में प्राचीन ग्रन्थकारों में भी कभी ऐकमत्य नहीं रहा है। इस सम्बन्ध में प्रायः 'षड्दर्शन' शब्द सुनाई पड़ता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि दर्शनों की संख्या छह ही है; परन्तु ये छह दर्शन कौन-कौन से हैं, इस बारे में भी विद्वानों में ऐकमत्य नहीं है। दूसरी बात यह है कि 'षड्दर्शन' शब्द बहुत पुराना नहीं है और इसके अन्तर्गत आने वाले दर्शनों के सम्बन्ध में प्रायः विवाद रहा है। जिस ग्रन्थकार को जिस दर्शन से विशेष प्रेम या परिचय रहा, उसने उसका समावेश 'षड्दर्शन' में कर दिया। स्पष्ट है कि इस सम्बन्ध में पर्याप्त विवाद है, इसलिए किसी एक ग्रन्थकार का आश्रय न लेकर अद्यावधि प्राप्त दर्शनों का यथासम्भव नामोल्लेख यहाँ इस रूप में किया जा सकता है।
सांख्य, योग, पाशुपत, लोकायत, पांचरात्र, न्याय, वैशेषिक, वेदान्त (अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत, अचिन्त्याद्वैत आदि) मीमांसा, बौद्ध (वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक) जैन, पाणिनीय (व्याकरण दर्शन) शैव, रसेश्वर, प्रत्यभिवाददर्शन। इनके अतिरिक्त आधुनिक काल में भी अरविन्द
और गाँधी जैसे महान् विचारकों का जन्म हुआ, जिनकी अपनी दार्शनिक विचारधारा है और जिन्होंने आधुनिक भारतीय चिन्तन को बहुत प्रभावित किया है। फिर भी, ग्रन्थ की अपनी सीमा के कारण इसे प्राचीन दर्शनों तक ही सीमित रखा गया है।"
वर्गीकरण-भारतीय दर्शन यद्यपि मूल में अखण्ड और अविभाज्य हैं, फिर भी उसका विकास अनेक धाराओं के रूप में हुआ, जैसा कि हम देख चुके हैं। ये सभी दर्शन-धाराएँ अपने-अपने दृष्टिकोण से दृश्य और अदृश्य