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________________ 18 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना जिनेन्द्र की मूर्ति के माध्यम से मूर्तिमान जिनेन्द्र देव को एवं उनके माध्यम से निज परमात्म स्वभाव को जान-पहचान कर उसी में रमना चाहता है। तिलोयपण्णति आदि ग्रंथों में सम्यक्त्वोत्पत्ति के कारणों में जिनबिंब दर्शन को भी एक कारण बताया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जिनपूजा अशुभ भाव से बचने के साथ-साथ सम्यक्त्वोत्पत्ति, भेदविज्ञान, आत्मानुभूति एवं वीतरागता की वृद्धि में भी निमित्तभूत हैं। स्तुतियों और भजनों की निम्न पंक्तियों से यह बात स्पष्ट है - तुम गुण चिंतत निज पर विवेक प्रक₹ विघटें आपद अनेक । जय परम शांत मुद्रा समेत भविजन को निज अनुभूति हेत।" इस संदर्भ में निम्नांकित भजन की पंक्तियाँ भी दृष्टव्य हैं - निरखत जिन चंद्रवदन स्वपद सुरुचि आयी। प्रकटी निज आन की पिछान ज्ञान भान की। कला उदोत होत काम जामिनी पलायी।12 इस प्रकार हम देखते हैं कि जिनेन्द्र भगवान का भक्त भोगों की वांछा नहीं रखता है, साथ में उसकी भावना मात्र शुभभाव की प्राप्ति की भी नहीं होती। वह तो एकमात्र वीतरागभाव का ही इच्छुक होता है, तथापि उसे पूजन और भक्ति के काल में सहज हुए शुभभावानुसार पुण्यबंध भी होता है और तदनुसार आत्मकल्याण के निमित्तभूत पारमार्थिक अनुकूलतायें व अन्य लौकिक अनुकूलतायें भी प्राप्त होती हैं। पूजक पूजा करते समय विचार करता है कि अहो! मैं भी तो स्वभाव से परमात्मा की भाँति ही अनंत असीम शक्तियों का संग्रहालय हूँ, अनंत गुणों का गोदाम हूँ। मेरा स्वरूप भी तो सिद्ध सदश ही है। मैं स्वभाव की सामर्थ्य से सदा भरपूर हूँ। मुझमें परलक्ष्यी ज्ञान के कारण जो मोह-राग-द्वेष हो रहे हैं, वे दुःख रूप हैं। इस प्रकार सोचते-विचारते उसका ध्यान जब भगवान की पूर्व पर्यायों पर जाता है, तब उसे ख्याल आता है कि जब शेर जैसा क्रूर पशु भी कालांतर में परमात्मा बन सकता है तो मैं क्यों नहीं बन सकता? सभी पूज्य परमात्मा अपनी पूर्व पर्यायों में तो मेरे जैसे ही पामर थे। जब वे अपने त्रिकाली स्वभाव का आश्रय लेकर परमात्मा बन गये तो मैं भी अपने स्वभाव के आश्रय से पूर्णता और पवित्रता प्राप्त कर परमात्मा बन . सकता हूँ।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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