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16 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना में पुण्य-पाप का वर्णन, 54 से 57वें पद में मिथ्यादृष्टि का वर्णन किया है। 58वें पद में वीतरागस्तुति, 59वें पद में धर्म का महत्त्व, 60वें पद में पुनः मिथ्यादृष्टि-वर्णन, 61वें पद में सम्यग्दृष्टि की इच्छा का वर्णन किया गया है।
___ शेष पदों में व्यवहार सम्यक्त्व तथा निश्चय सम्यक्त्व का वर्णन, उद्यम का वर्णन, ज्ञानी चिन्तवन, ज्ञानी का बल वर्णन, मिथ्यात्वादि सिद्धपर्यन्त अवस्थाएँ, सर्वगुरु-स्तुति, मूढ़दशा वर्णन, जीव की पूर्वदशा, ज्ञानवर्णन, षद्रव्य कथन, नवतत्त्व स्वरूप का वर्णन, बीस स्थानों के नाम, सुबुद्धि वचन, जिनस्तुति वर्णन, जीव के नव दृष्टान्त वर्णन, हर्ष-शोकजय मन्त्र, ज्ञानी महिमा आदि अनेक विषयों का निरूपण किया है। (ख) द्यानतराय का पूजा साहित्यपूजन का अर्थ, आवश्यकता व महत्त्व
देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां षट् कर्माणि दिने दिने।।
देवपूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान-ये छह आवश्यक कार्य गहस्थों को प्रतिदिन करना चाहिए। यह पावन आदेश आचार्य पद्मनंदी का है।
भक्ति-"पूजा का स्वरूप दर्शाते हुए आचार्य अपराजित लिखते हैं -
''का भक्तिपूजा? अर्हदादिगुणानुरागो भक्तिः। पूजा द्विप्रकारा - . द्रव्यपूजा भावपूजा चेति। गंधपुष्पधूपाक्षतादीनामर्हदाधुद्दिश्य द्रव्यपूजा अभ्युथानप्रदक्षिणीकरणप्रणमनादिका कायक्रिया च वाचा गुणसंस्तवनं च। भावपूजा म्नसा तद्गुणानुस्मरणम्।'
द्रव्यपूजा व भावपूजा के संबंध में पंडित सदासुखदासजी लिखते हैं -
'अरहंत के प्रतिबिंब का वचन द्वार से स्तवन करना, नमस्कार करना, तीन प्रदक्षिणा देना, अंजुलि मस्तक चढ़ाना, जल-चंदनादिक अष्ट द्रव्य चढ़ाना; सो द्रव्यपूजा है। अरहंत के गुणों में एकाग्रचित्त होकर, अन्य समस्त विकल्प छोड़कर गुणों में अनुरागी होना तथा अरहंत के प्रतिबिंब का ध्यान करना; सो भावपूजा है।
उक्त कथन में एक बात अत्यंत स्पष्ट रूप से कही गयी है कि अष्ट द्रव्य से की गयी पूजन तो द्रव्य पूजन है ही, साथ ही देव-शास्त्र-गुरु की