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कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
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सम्पूर्ण साहित्य पद्यात्मक है । पद्य में भी मुक्त काव्य ही मिलता है। मुक्त काव्य के अन्तर्गत - द्रव्यादि चौबोल - पच्चीसी, विवेक-बीसी, सुखबत्तीसी, ज्ञानदशक, दशबोल-पच्चीसी, जिनगुणमाल - सप्तमी, समाधिमरण भाषा, तिथि - षोडशी, यति- भावनाष्टक, वर्तमान - चौबीसी - दशक, अध्यात्मपंचासिका, आठगण–छन्द, धर्मचाह - गीत, आदिनाथ - स्तुति, जुगल - आरती, वाणीसंख्या, षड्गुणी - हानि - वृद्धि, अक्षरबावनी, पल्ल पच्चीसी, सरधा - चालीसी, भक्तिदशक, दर्शन - दशक, धर्मरहस्य - बावनी, दशस्थान - चौबीसी, एकीभावस्तोत्र - भाषा, स्वयंभूस्तोत्र - भाषा, पार्श्वनाथस्तवन, स्तुतिबारसी, आरती - दशक, उपदेश - शतक, सुबोध - पंचासिका, धर्म-पच्चीसी, व्यसनत्याग - षोडश, दान- बावनी, व्यौहार - पच्चीसी, आलोचनापाठ, शिक्षा - पंचासिका, सज्जनगुण - दशक, नेमिनाथ - बहत्तर, वैराग्य - छत्तीसी, वज्रदन्त-कथा, आगमविलास, द्यानतविलास, चरचा - शतक, भावना स्तोत्र पद - संग्रह आदि आते हैं।
यद्यपि द्यानतराय की सम्पूर्ण रचनाओं को खोजने हेतु राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश के अनेक शास्त्रभण्डारों को देखा गया है, अनेक विद्वानों से सम्पर्क किया गया है; चर्चाएँ की गयी हैं, तथापि भविष्य में द्यानतराय की अन्य किसी फुटकर रचना की उपलब्धता से इनकार नहीं किया जा सकता है। चरचाशतक - यह सौ पद्यों का करणानुयोग को व्याख्यायित करने वाला मुक्तक काव्य है । संख्या परक कृतियों में उसमें आने वाली निश्चित संख्या से कुछ अधिक पद्यों को रचने का प्रचलन रहा है, जैसे बिहारी सतसई आदि । कवि द्यानतराय ने भी चरचाशतक में सौ से अधिक पद्य रचे हैं । चरचाशतक की कई मुद्रित प्रतियाँ देखने में आयी हैं, उसमें सरस्वती भण्डार चुरुकों का रास्ता, जयपुर, गीता देवी वीरचन्द जैन, जूनापीठा, मेन रोड, इन्दौर - दोनों ही प्रतियों में 104 पद्य ही मिलते हैं । अतः 104 पद्य ही मान्य हैं। सरस्वती भण्डार, जयपुर से प्रकाशित चरचाशतक के आमुख लेखन में इसकी प्रशंसा में लिखा है कि
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“चरचाशतक द्यानतराय का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। सूत्र रूप से किसी बात को समझाना और सरलतम भाषा का उपयोग रचना के महत्त्व को द्विगुणित कर देता है। तत्कालीन जनता को इस ग्रन्थराज से अवश्य अत्यन्त लाभ हुआ होगा; क्योंकि कठिन से कठिन विषय को भी उन्होंने