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208 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 2) बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय । खाया चाहै आंब गंडेरी, बोवै आक धतुरे जी।
अक्षर बावनी, पद-6 3) एक पंथ दो काज। दुःख निवारन सुखकरन, एक पंथ दो काज ।
- शिक्षा पंचासिका, पद-33 4) बहते पानी में हाथ धोना। बहते पानी हाथ न धौवे, फिरि पछिताय होय का सार।। .
दान बावनी, 19 इस प्रकार द्यानतसाहित्य में विभिन्न मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग शब्दशः हुआ है। द्यानतराय ने इन कहावतों एवं मुहावरों का प्रयोग बिना किसी प्रयास के स्वाभाविकरूप से किया है। उनकी अभिव्यक्ति की सरलता में जो कहावत या मुहावरा सर्वथा उपयुक्त ठहरता है, उसका उन्होंने उपयोग किया है। - इन मुहावरों का प्रयोग भावाभिव्यक्ति की सम्पन्नता एवं अलंकरण सौन्दर्य के लिए ही हुआ है। इससे अर्थ व्यंजना के साथ-साथ भाषा पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय मिलता है। उनके मुहावरों में सुबोधता एवं अकृत्रिमता सर्वत्र विराजती है। वास्तव में मुहावरे एवं कहावतों के सम्यक् प्रयोग से भाषा में प्रभावशीलता पैदा हुई है तथा भावसौन्दर्य में अभिवृद्धि हुई है।
(मन! मेरे राग भाव निवार) मन! मेरे राग भाव निवार || मन राग चिक्कनौं लागत है, कर्मधूलि अपार । ।मन... राग आस्रव मूल है, वैराग्य संवर धार। जिन न जान्यो भेद यह, वह गयो नरभव हार। मन... दान पूजा शील जप तप, विविध प्रकार | राग बिन शिव सुख करत है, राग” सेसार ।।मन... वीतराग कहा कियो, यह बात प्रगट निहार। सोई कर सुख हेत 'द्यानत' शुद्ध अनुभव सार।।मन...