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________________ 206 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना बोध कराने के लिए विविध चिह्नों का व्यवहार भी किया गया है। 4. आत्मबोधक प्रतीक-निराकार को आकार देने के लिए द्यानतराय ने आत्मबोधक शब्दों का प्रयोग किया है। जो निम्नांकित हैं-आत्मा-हंस, मन-सूवा। . महाकवि द्यानतराय की प्रतीक योजना के साधन उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, सारोपा, साध्यावसाना लक्षणा रहे हैं। अन्य हिन्दी जैन कवियों की परम्परा की भाँति द्यानतराय ने भी प्रतीकों का प्रयोग अधिकतर रूपक अलंकार के रूप में किया है; परन्तु कहीं-कहीं प्रतीकों का प्रयोग अपने सहजरूप में मिलता है। कवि के प्रतीक जैन परम्परानुमोदित तो हैं ही, साथ ही लोक जीवन से भी लिये गये हैं। कवि की प्रतीक योजना में स्वाभाविक बोधगम्यता दिखाई देती है। बोधगम्य प्रतीकों के कारण भावों एवं सूक्ष्म मनोवृत्तियों के उद्बोधन में कवि को पूर्ण सफलता मिली है। इसी प्रकार अप्रस्तुत भावों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त प्रतीकों द्वारा रसोद्वोधन एवं भावोद्वोधन में भी सफलता दृष्टिगत होती है। इसप्रकार द्यानतसाहित्य में जैन परम्परानुमोदित सुखबोधक, दुःखबोधक, शरीरबोधक और आत्मबोधक प्रतीकों का प्रायः रूपक अलंकार की भाँति प्रयोग किया गया है। (5) द्यानतसाहित्य में मुहावरे और कहावतें महाकवि द्यानतराय ने अपने भावों एवं अनुभूतियों की विशेष प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए अपनी भाषा में मुहावरे एवं कहावतों का प्रयोग किया है। मुहावरे और कहावतों की अपनी-अपनी विभिन्न विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं से युक्त होने के कारण द्यानतसाहित्य अनूठा बन पड़ा है। द्यानतराय ने मुहावरों एवं लोकोक्तियों द्वारा बड़ी से बड़ी बात को अति प्रभावशील ढंग से सूक्ष्म परिवेश में व्यक्त करने का प्रयास किया है। . द्यानतराय ने अपने साहित्य में निम्नलिखित मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग किया है - क्रमांक मूलरूप काव्य में प्रयुक्त रूप कृति का नाम 1. आकाश के फूल कुसुमनि नभ देखै, उपदेश शतक-30 2. अंजुलि पानी होना आव घटै जिम अंजुलि पानी उपदेश शतक-26
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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