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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना होते हैं।* द्यानतराय के काव्य में इसके कई उदाहरण प्रस्तुत हैं इस खारवार संसार में, कल्पवृक्ष तुम दरस है 55 ऐसे महाराज जिनराज हैं जिहाज सम । । 58 यह संसार असार है, कदली वृक्ष समान | यामै सारपनो लहै, सो मूरख परधान । । सो मूरख परधान, मानि कुसुमनि नम देखे । सलिल मथे धृत वहै, श्रृंग सुन्दर खर पैले । 17 (6) मालोपमा - जब उपमा में एक उपमेय के अनेक उपमान हों, मालोपमा एक प्रकार का उपमा अलंकार ही है । अन्तर इतना ही है कि उपमा के उपमान एक ही होता है, मालोपमा में उपमान अनेक होते हैं। द्यानतराय के काव्य में मालोपमा के कई उदाहरण हैं । जैसे " पललै कलप तरु बेलि ज्यों, वंछित सुर नर राज । चिंता मनि ज्यों देत है, चिंतित अर्थ समाज ।। स्वामी तेरी भगति सौ भक्त पुण्य तीन अरथ सुख भोग के तीनों जग के सुरज सम तन मास कै ससि सम वचन मेय समान सुजी रे, सुरतरु सम गुण रास - हों । 180 चन्द बिना निसि गज विनदत, जैसे तरुण नारि विन कंत । धर्म बिना त्यों मानुष देह, तातैं करियै धर्म सनेह । । " गुण अनंत भगवंत अंत नहिं ससि कपूर हिम पीर । · द्यात एकहु गुण हम पावै, दूरि करै भव भीर । । 2 — उपजाय । राय ।। 59 प्रकास हो । 203 (7) रूपक - जब एक वस्तु पर दूसरी वस्तु का आरोप किया जाये अर्थात् जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु का रूप दिया जाये अर्थात् जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु बना दिया जाये, वहाँ रूपक अलंकार होता है। द्यानतराय के काव्य में रूपक अलंकार का प्रयोग पर्याप्त है। मैं कहे चहूँ गति गमन को, दया विसन लीनों पकर । तव करम साह के हुकम तै, चढ़यौ मुकति गढ़ ग्वालियर । । 63 भवि पूजो मन वच श्री जिनन्द, चितचौर सुख करन इंद । कुमति कुमुदिनी हरन सूर, विषन सघन वन दहन भूर ।। पाप डरंग प्रभु नाम मोर, मोह महा तन दलन मोर । दुख दारिद्र हर अनय रेन, द्यानत प्रभु दे परम चैन ।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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