________________
182 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना
90. उपदेश शतक, पद-107 91. गणेश ललवानी रचित, जैनधर्म व दर्शन, पृष्ठ-127 92. उमास्वामी कृत तत्त्वार्थसूत्र, सूत्र-2, अध्याय प्रथम 93. अध्यात्म पद पारिजात, पृष्ठ-76 94. वही 95. द्यानतराय कृत रत्नत्रय पूजन 96. आध्यात्मिक पद संग्रह, पद-81, पृष्ठ-338 97. हिन्दी पद संग्रह, द्यानतराय के पद 98. द्यानतराय कृत रत्नत्रय पूजन 99. वही 100. अध्यात्म पद पारिजात, पृष्ठ-84 101. वही, पृष्ठ-85 102. द्यानतराय कृत सम्यक्चारित्र पूजन 103. द्यानतराय कृत रत्नत्रय पूजन 104. अध्यात्म पद संग्रह, पृष्ठ-36 105. आध्यात्मिक पाठ संग्रह, पृष्ठ-342 106. शिक्षा पंचासिका, पद-45 107. अध्यात्म पद पारिजात, पृष्ठ-143 108. वही, पृष्ठ-142, 109. वही, पृष्ठ-143, 110. वही, पृष्ठ-146
(आदिनाथ अरहन्त आदि गुरु)
भ्रम्योजी भ्रम्यो, संसार महावन, सुख तो कबहुं न पायोजी। पुद्गल जीव एक करि जान्यो, भेद ज्ञान न सुहायो जी।। मन-वच-काय जीव संहारो, झूठो वचन बनायो जी। चोरी करके हरष बढ़ायो, विषय भोग गरबायोजी।। नरकमाहिं छेदन-भेदन बहु, साधारण बसि आयो जी। गरभ जनम नरभव दुःख देखे, देव मरत बिललायो जी।। द्यानत अब जिनवचन सुनै मैं, भवमल पाप बहायोजी। आदिनाथ अरहन्त आदि गुरु, चरनकमल चितलायोजी।।