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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 179 ताको कहो कह कैसे करि, जा जानै जिम जान्यौ । पूरवभाव सुपनवत देखो, अपनो अनुभव तान्यो । द्यानत सो अनुभव स्वादत ही, जनम सफल करि मान्यौ ।।109 इसी प्रकार वे लिखते हैं - आतम अनुभव कीजै हो।। टेक।। जनम जरा अरु मरन नाशकै, अनंत काल लौं जीजे हो। देव धरम गुरु की सरधाकरि, कुगुरु आदि तजि दीजैहो।। छहों दरब नवतत्त्व परखकै, चेतन सार गहीजै हो। दरब करम नो करम भिन्न करि सूक्ष्म दृष्टि धरीजै हो।। भाव करमते भिन्न जानिकै बुद्धि, विलास न मरीजै हो। आप आप जानै सो अनुभव, द्यानत शिव का दीजै हो। और उपाय वन्यो नहिं बनि है करै सो दक्ष करीजै हो।। आतम ।।10 , इस प्रकार कवि द्यानतराय जनम-मरण के नाश करने में स्वानुभव को परमावश्यक मानते हैं। वे मानते हैं कि जब तक द्रव्यकर्म, नोकर्म एवं भावकर्म से भिन्न बुद्धि नहीं होगी। तब तक स्वानुभव नहीं हो सकता। अतः स्वानुभव के लिए स्वयं को द्रव्यकर्म, नोकर्म, भावकर्म से रहित मानकर स्वयं को जानना ही स्वानुभव है। सन्दर्भ सूची 1. पण्डित आशाधर कृत सागर धर्मामृत, अध्याय-1, पद-7 2. पण्डित सदासुख ग्रन्थमाला, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-305 3. आचार्य कुन्दकुन्द कृत प्रवचनसार 4. अध्यात्म पद संग्रह, प्रथम भाग, पृष्ठ-30, भजन-53 5. हिन्दी पद संग्रह, पृष्ठ-119 6. हिन्दी पद संग्रह, भजन-153, पृष्ठ-128 7. हिन्दी पद संग्रह, भजन-162, पृष्ठ-134 8. द्यानतराय कृत, छहढाला, चतुर्थ ढाल 9. द्यानतराय कृत दशलक्षण पूजन 10. द्यानतराय कृत दशलक्षण पूजन 11. द्यानतविलास, पृष्ठ-30, पद-69 12. अध्यात्म पद पारिजात, भजन-584, पृष्ठ-220 13. हिन्दी पद संग्रह, पृष्ठ-136
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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