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________________ 172 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना ... मरे अनन्तबार बिन समझें, अब सब दुख विसरेंगे। .... 'द्यानत' निपट निकट दो आखर, बनि सुमरै सुमरेंगे। सम्यग्दर्शन को पाने से प्रगट होनेवाले आठ गुणों एवं पच्चीस दोषों की बात करते हुए द्यानतरायजी संसारी जीवों को सम्यग्दर्शन प्रगटाने हेतु प्रेरित करते हुए लिखते हैं कि - . - आप आप निहचै लखौ, तत्त्व प्रीति व्योहार । . रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुन सार ।। सम्यक् दर्शन-रतन गहीजे, जिन वच में सन्देह न कीजै। . इह-भव विभव-चाह दुःखदानी, पर भव भोग चहै मत प्रानी।। प्रानी गिलान न करि अशुचि लखि, धरम गुरु प्रभु परखिये। पर दोष ढकिये धरम डिगते, को सुधिर कर हरखिये।। : चहुँ संघ को वात्सल्य कीजै, धरम की परभावना। . गुन आठसों गुन आठ लहिकै इहाँ फेर न आवना ।।95. ... सम्यग्दृष्टि को सुखी बताते हुए वे लिखते हैं - .. देखे सुखी सम्यक्वान। ... सुख दुख को दुखरूप विचारै, धारै अनुभव ज्ञान। नरक सात में के दुख भोगैं, इन्द्र लखें तिन मान।। भीख माँगकै उदर भरै न करें चक्री को ध्यान । तीर्थकर पद को नहिं चावें, जपि उदय अप्रमान।। कुष्ट आदि बहु व्याधि दहत न, चहत मकरध्वज थान। आघि व्याधि निरबाध अनाकुल, चेतनजोति पुमान । द्यानत मगन सदा तिहिंमाहीं, नाहीं खेद निदान ।। देखें । 196 __ सम्यक्दर्शन से लाभ की बात बताते हुए द्यानतराय कहते हैं कि - जगत में सम्यक् उत्तम भाई।। टेक।। सम्यकसहित प्रधान नरक में, धिक शठ सुरगति पाई।। श्रावकव्रत मुनिव्रत जे पालैं, ममता बुद्धि अधिकाई। तिनतें अधिक असंजमचारी, जिन आतम लव लाई।। पंच परावर्तन तै कीनै, बहुत बार दुखदाई। लख चौरासि स्वांग धरि नाच्यौ, ज्ञानकला नहिं आई।। सम्यक बिन तिहुँ जग दुखदाई, जहँ भावै तहँ जाई। द्यानत सम्यक आतम अनुभव, सद्गुरु सीख बताई।। तीर्थकरोग उदरख भोगे,
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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