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98- कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना और काम से है अर्थात् इनमें से किसी के द्वारा केवल धर्म, अर्थ या काम की प्राप्ति हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी महान लौकिक उपाय के द्वारा इन तीनों की प्राप्ति हो जाए; परन्तु परम पुरुषार्थरूप चतुर्थ वर्ग अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति केवल आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान से ही हो सकती है - ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः ।
वास्तव में, मनुष्य के अन्तःकपाट को उद्घाटित करके हृदय में आत्मतत्त्व के दर्शन करानेवाली विद्या अध्यात्म विद्या ही है, किन्तु इस प्रयोजन की सिद्धि केवल किसी धार्मिक ग्रन्थ को पढ़ लेने या रट लेने मात्र से ही नहीं हो सकती। इसके लिए साधक को अत्यन्त कड़ी साधना करनी होती है। प्रो. हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा ने लिखा है कि 'जब हम भारतीय दर्शन की ओर दृष्टिपात करते हैं, तब उसे अध्यात्मवाद के रंग में रंगा पाते हैं। भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक ज्ञान को प्रधानता दी गई है। यहाँ का दार्शनिक सत्य के सैद्धान्तिक विवेचन से ही सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि वह सत्य की अनुभूति पर जोर देता है। आध्यात्मिक ज्ञान तार्किक ज्ञान से उच्च है। तार्किक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय का द्वैत विद्यमान रहता है, जबकि आध्यात्मिक ज्ञान में वह द्वैत मिट जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान निश्चित एवं संशयहीन है।'
निष्कर्षतः मोक्ष की प्राप्ति आत्मा के द्वारा मानी गयी है। प्रायः सभी भारतीय दर्शनों ने आत्मा का अनुशीलन किया है और आत्मा के स्वरूप की व्याख्या इनके अध्यात्मवाद का सबूत है। भारतीय दर्शन को आत्मा की परम महत्ता प्रदान करने के कारण ही अध्यात्म विद्या भी कहा जाता है।
(गुरु स्तुति)
__ धनि धनि ते मुनि गिरि वनवासी। कौड़ी लाल पास नहिं जाके,जिन छेदी आसापासी। आतम-आतम, पर-घर जानै, द्वादश तीन प्रकृति नासी।। जा दुःख देख दुःखी सब जगदै, सो दुःख लख सुख वै तासी। जाकों सब जग सुख मानत है, सो सुख जान्यो दुःखरासी।। वाहज भेष कहत अन्तर गुण, सत्य मधुर हितमित भासी। द्यानत ते शिवपंथ पथिक हैं, पांव परत पातक जासी।