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=लघु शान्ति विधान ॥===
(हरिगीत) प्रभो शान्तिविधान करने, का हृदय में भाव है। जान लूँ मैं आत्मा जो, स्वयं शान्त स्वभाव है ।। पंचपरमेष्ठी जिनालय, और जिनप्रतिमा परम । मात जिनवाणी सुपावन, तथा उत्तम जिनधरम ।। सभी को वन्दन करूँ मैं, सभी की पूजन करूँ । महा शान्ति अपूर्व पाऊँ, कर्म के बन्धन हरूँ ।। पूज्य श्री नवदेवताओं, को करूँ सादर नमन । भेद-ज्ञान जगा मिटाऊँ, जन्म और जरा-मरन ।।
. (वीर) ॐ ह्रीं श्री पंच परम परमेष्ठी, परम पूज्य भगवान । वृषभादिक श्री वीर जिनेश्वर, तीर्थंकर चौबीस महान । सीमन्धर युगमन्धर आदिक, विद्यमान तीर्थंकर बीस। जिनमन्दिर जिनप्रतिमा जिनवाणी, जिनधर्म झुकाऊँशीश।। महाशक्ति मंगल के दाता, हरो अमंगल हे जगदीश । भाव-द्रव्य से पूजन करके, शान्ति प्राप्त कर लूँ हे ईश!। भेदज्ञान की अनुपम निधिदो, समकित रविका करोप्रकाश। जिनदर्शन से निजदर्शन, पाने का जागा है उल्लास। भव-रोगों से अतिव्याकुल हूँ, मिथ्याभ्रम का करो विनाश। आत्मशान्ति के हेतु शरण, आया हूँ ले पूरा विश्वास। आह्वानन मैं नहीं जानता, सुस्थापन भी लेश नहीं। सन्निधिकरण न जानें स्वामी, मात्र आपकी शरण गही। पूर्ण भक्ति से नमन करूँ मैं, विनय करूँ प्रभु बारम्बार । महाशान्ति के रथ पर चढ़कर, हो जाऊँ भवसागर पार ।।
(दोहा) शान्ति-प्रदायक देव नव, आओ हृदय मँझार। नित प्रति अन्तर में बसो, पाऊँ भव-दधिपार।
॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
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