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=॥ लघु शान्ति विधान ॥=
अधोलोक में भवनवासी देवों के सातकरोड़ बहत्तरलाखजिनालयों को अर्घ्य भवनवासियों के भवनों में, सात करोड़ बहत्तर लाख। जिन चैत्यालयसभीअकृत्रिम, वन्दूँनित जिन आगमसाख॥ असुरकुमार जाति के देवों के हैं चौंसठ लाख भवन । नागकुमार जाति के देवों के हैं चौरासी लाख भवन । सुपर्णकुमार जाति के देवों के सुबहत्तर लाख भवन । द्वीपकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन ।। उदधिकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन । स्तनितकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन । विद्युतकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन । दिक्ककुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन ।। अग्निकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन । वायुकुमार जाति के देवों के सुछिहत्तर लाख भवन-।। ये सब सात करोड़ बहत्तर लाख जिनालय मनहर हैं। इनको अर्घ्य समर्पित करने के परिणाम सुसुन्दर हैं। अधोलोक के सर्व जिनालय, अकृत्रिम वन्दूँ हे नाथ! । परम शान्ति के हेतु आपके, चरणों का न तजूं प्रभु साथ। ॐ ह्रीं श्री अधोलोकस्थित-भवनवासीदेवसम्बन्धि द्विसप्ततिलक्षाधिक
सप्तकोटि-जिनालयेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। व्यन्तरदेवों के असंख्यातजिनालयों को अर्घ्य व्यन्तरदेवों के भवनों में, असंख्यात जिनभवन महान । भावसहित वन्दन करके मैं, करूँ आत्मा का कल्याण ।। अर्घ्य चढ़ाऊँ विनय-भक्ति से, सादर सविनय करूँ प्रणाम।
परम शान्ति की महिमा जागी, अतः शीघ्र पाऊँ ध्रुवधाम। 2 ॐ ह्रीं श्री व्यन्तरलोकसम्बन्धि-असंख्यातजिनालयेभ्योऽयँ नि. स्वा.
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