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==॥ लघु शान्ति विधान ।। === पंचमेरुसम्बन्धी तीसकुलाचल जिनालयों को अर्घ्य एक मेरु सम्बन्धी पर्वत, नाम कुलाचल षट् अभिराम। हिमवन-महाहिमवन-निषध, अरुनील-रुक्मि-शिखरीहैनाम।। स्वत: व्यवस्थित दक्षिण दिशिसे, दक्षिण से उत्तर तकतीन । भरत-हैमवत-हरि-सुनाम है, इन क्षेत्रों के जो हैं तीन॥ गिरि सुमेरु से उत्तर दिशि में, दक्षिण से उत्तर तक तीन । रम्यक् अरु हिरण्यवत अरु, ऐरावत क्षेत्र नाम यह तीन॥ इनके मध्य कुलाचल शोभित, पंचमेरु सम्बन्धी तीस।.. इन पर एक-एक जिनमन्दिर, जिनमें शोभित हैं जगदीश। इन सबको मैं अयं चढ़ाऊँ, विनयभाव से त्रिभुवननाथ। जब तक परमशान्ति नहीं पाऊँ,तजूंन तुम चरणों का साथ। ॐ ह्रीं श्री पंचमेरुसम्बन्धि-त्रिंशतकुलाचलस्थित-जिनालयेभ्योऽयं स्वाहा।
मानुषोत्तर-सम्बन्धी चारजिनालयों को अर्घ्य . ढाईद्वीप की अन्तिम सीमा, मानुषोत्तर पर्वत ख्यात । आगेगमन नहीं मनुजोंका, जिन-आगमकथनी विख्यात॥ इन पर चार जिनालय चारों, दिशि में शोभित हैं पावन । परम शान्ति की धारा पाऊँ, यही विनय है मन-भावन ।। ॐ ह्रीं श्री मानुषोत्तरपर्वत-सम्बन्धि-चतुर्जिनालयेभ्योऽयं निर्व. स्वाहा। अष्टमनन्दीश्वरद्वीपके बावन जिनालयों कोअर्घ्य
(ताटंक) अष्टम द्वीप श्री नन्दीश्वर, चारों दिशि में चार सुवन । एक-एक में तेरह-तेरह जिनगृह सुन्दर मन भावन ।। अंजनगिरि हैं कृष्णवर्ण के, इनके चार जिनालय भव्य। सोलह दधिमुख श्वेतवर्ण के सोलह चैत्यालय अति दिव्य॥
रतिकर पर्वत लालवर्ण के, हैं बत्तीस जिनालय श्रेष्ठ। र सब मिल बावन जिनगृह वन्दूँ, तज संसारभाव सब नेष्ठ॥
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