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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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अंश है, स्वतन्त्र है और उसी समय ध्रुव सत् पूर्ण सामर्थ्यसहित वर्तता है। ऐसी गुण-पर्यायरूप वस्तु है, उसे पहचानने से मोक्षमार्ग प्रगट होता है, फिर मोक्ष होने पर पूर्ण ज्ञान-आनन्द प्रगट होते हैं। पहले अपूर्ण आनन्द था और अन्दर से पूर्ण अनन्त आनन्द प्रगट हुआ, फिर भी अन्दर शक्तिरूपं ध्रुव तो इतना का इतना रहा। उसमें से तो कुछ कम नहीं हुआ – तब हुआ क्या? तो कहते हैं कि पर्यायधर्म की परिपूर्णता प्रगट हुई। आत्मा, द्रव्यधर्म से तो पूरा था ही और अब पर्यायधर्म भी पूरा हुआ। पूर्णस्वभाव को अवलम्बन करनेवाली पर्याय, वह ऐसी मोक्षदशा का कारण है।
आत्मवस्तु, द्रव्यरूप से शाश्वत् है, उसे पारिणामिक परमभाव कहा जाता है।अवस्था में रागादि दुःखरूप भाव हैं, वह औदयिकभाव है। आनन्दकन्दस्वभाव का भान करके, उसके सन्मुख परिणमित होने से रागरहित भाव प्रगट हों, वह औपशमिक, क्षायोपशमिक या क्षायिकभाव है और वह मोक्ष का कारण है। पारिणामिकभाव, मोक्ष का कारण नहीं है क्योंकि वह ध्रुव है; वह बन्ध-मोक्षरूप परिणमित नहीं होता। परिणमन, पर्याय अपेक्षा से है; इसलिए मोक्ष का कारण भी पर्याय में है। ____ शुद्ध एक अखण्ड चैतन्यवस्तु, वह देह की मिट्टी से निराली, . कर्म के रजकणों से निराली, राग से भी निराली और जो एक पर्याय व्यक्त अंशरूप है, उतना ही उसका सम्पूर्ण स्वरूप नहीं है; वह तो पूर्ण शक्ति से सदा परिपूर्ण है। ऐसे स्वभाव के आश्रय से होनेवाली भावना-परिणति, वह मोक्ष का कारण है, वह रागरहित है; उसमें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनों समाहित होते हैं। राग, मोक्ष का कारण नहीं है परन्तु बन्ध का कारण है। ध्रुवभाव, बन्ध का या मोक्ष