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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा परमार्थ भी अलौकिक है । चौदह मार्गणा द्वारा जीव की पर्याय के शुद्ध - अशुद्ध प्रकारों का सूक्ष्म ज्ञान कराया है परन्तु उस पर्याय के भेद के समक्ष देखने से शुद्धजीवस्वभाव अनुभव में नहीं आता; इसलिए समयसार गाथा 50 से 55 में 29 बोलों द्वारा उस अशुद्धता. को और पर्याय-भेदों को शुद्धआत्मा की अनुभूति से वाह्य कहा है। आत्मा की ऐसी अनुभूति, वह साक्षात् मोक्षमार्ग है । 111 भाई ! तेरी आत्मा को पर के साथ तो कोई सम्बन्ध नहीं है । अपनी अवस्था और अपना द्रव्य, इन दो अंशों के बीच की सारी क्रीड़ा है, उसमें जो द्रव्य अंश है, वह ध्रुव है और पर्याय अंश, उत्पाद - व्ययरूप है । ध्रुव में आवरण या अशुद्धता नहीं होती, निरावरण शुद्ध एकरूप है। अशुद्धता और शुद्धता; बन्धन और मोक्ष, ये पर्याय में होते हैं । वह चैतन्यस्वभावी भगवान आत्मा का त्रिकाली स्वरूप कैसा है ? पारिणामिक परमभावरूप है। जीव के इस अविनाशी जीवन में अशुद्धता नहीं है; बन्ध-मोक्ष नहीं है । अनन्त गुणसहित त्रिकाल शाश्वत् जीवत्व, वह परमभाव है । उसे परमभाव कहो या शुद्धद्रव्य कहो, उसके आश्रय से मोक्षमार्ग खुलता है । जीव के अनन्त गुण त्रिकाल पारिणामिकभावपने हैं परन्तु गुण के भेद नहीं करके, अनन्त गुण से अभेद एक परमभाव का अनुभव करना चाहिए, वह मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्ग, तीन भावरूप है; मोक्ष, एक क्षायिकभावरूप है; बन्ध, उदयभावरूप है, और बन्ध - मोक्षरहित, वह पारिणामिकभाव है। पारिणामिकभाव के तीन भेदों में जो जीवत्व कहा है, वह व्यवहार जीवत्व, अर्थात् दश प्राणरूप अशुद्धजीवत्व लेना; शुद्ध - जीवत्व उसमें नहीं आता है । द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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