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________________ उपादान - निमित्त की स्वतन्त्रता जाता है, किन्तु उसके कारण सुई में विलक्षणता नहीं होती । जब उपादान में कार्य होता है, तब व्यवहार से- आरोप से दूसरे पदार्थ को निमित्त कहा जाता है। ज्ञान का स्वभाव स्व-परप्रकाशक है, इसलिए वह उपादान और निमित्त दोनों को जानता है । सभी निमित्त धर्मास्तिकायवत् इष्टोपदेश गाथा 35 में कहा है कि सभी निमित्त 'धर्मास्तिकायवत्' है। धर्मास्तिकायपदार्थ लोक में सर्वत्र है, जब जीव और पुद्गल अपनी योग्यता से गमन करते हैं, तब धर्मास्तिकाय को निमित्त कहा जाता है और जब वे गमन नहीं करते तो उसे निमित्त नहीं कहा जाता । धर्मास्तिकाय की भाँति ही समस्त निमित्तों का स्वरूप समझना चाहिए। धर्मास्तिकाय में निमित्तपने की ऐसी योग्यता है कि जब जीव- पुद्गल गति करते हैं, तब उन्हीं में उसे निमित्त कहा जाता है, किन्तु स्थिति में उसे निमित्त नहीं कहा जाता; स्थिति का निमित्त कहलाने की योग्यता अधर्मास्तिकाय में है । सिद्धभगवान अलोक में क्यों नहीं जाते ? 63 सिद्धभगवान अपनी क्षेत्रान्तर की योग्यता से जब एक समय में लोकाग्र में गमन करते हैं, तब धर्मास्तिकाय को निमित्त कहा जाता है परन्तु धर्मास्तिकाय के अभाव के कारण उनका अलोक में गमन नहीं होता - यह कथन निमित्तसापेक्ष है। वास्तव में वे लोकाग्र में स्थित होते हैं, यह भी उनकी ही वैसी योग्यता के कारण से है, उस समय अधर्मास्तिकाय निमित्त है। प्रश्न – सिद्धभगवान लोकाकाश के बाहर गमन क्यों नहीं करते ?
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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