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वस्तुविज्ञानसार
सम्यनियतिवाद के निर्णय में तो वस्तु की स्वतन्त्रता की प्रतीति है और केवलज्ञान की प्रतीति है। अपनी अवस्था का आधार द्रव्य है और द्रव्यस्वभाव शुद्ध है - ऐसी प्रतीति के साथ जो होना हो सो होता है' इस प्रकार जो मानता है, वह जीव वीतरागदृष्टि है। उसका निर्णय वीतरागता का कारण है। ... नियतिवाद के दो प्रकार है - एक सम्यनियतिवाद और दूसरा मिथ्यानियतिवाद। सम्यनियतिवाद, वीतरागता का कारण है, उसका स्वरूप ऊपर बताया है। कोई जीव इस प्रकार नियतिवाद को मानता तो है कि जैसा होना हो वैसा ही होता है किन्तु पर का लक्ष्य और पर्यायदृष्टि छोड़कर स्वभावसन्मुख नहीं होता अथवा नियति का निश्चय करनेवाले अपने ज्ञान और पुरुषार्थ की स्वतन्त्रता को जो स्वीकार नहीं करता; पर और विकार के कर्त्तत्वरूप अभिमान को नहीं छोड़ता; इस प्रकार पुरुषार्थ का निषेध करके स्वच्छन्दता से प्रवृत्ति करता है, उसे गृहीतमिथ्यादृष्टि कहा है, उसका नियत एकान्त नियतिवाद है।
'जो होना हो सो होता है इस प्रकार मात्र परलक्ष्य से मानना यथार्थ नहीं है। होना हो सो होता है यदि ऐसा यथार्थ निर्णय हो तो जीव का ज्ञान, पर के प्रति उदासीन होकर, अपने स्वभाव की ओर झुक जाए और उस ज्ञान में यथार्थ शान्ति व पर का अकर्त्तत्व हो जाए। उस ज्ञान के साथ ही पुरुषार्थ, नियति, काल, स्वभाव और कर्म, यह पाँचों समवाय आ जाते हैं।
प्रश्न – मिथ्यानियतिवादी जीव भी, जब परवस्तु बिगड़ जाती है अथवा नष्ट हो जाती है, तब यह मानकर शान्ति तो रखता